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शनिवार, 25 अगस्त 2012

शंख-नाद(एक ओज गुणीय काव्य)-(द) -जागरण गीत-- (४)अर्जुन जागो !


सारे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार उद्धृत




!!!अर्जुन जागो!!! 

^^^^^^^^^^^^^
  

मत सोओ हे अर्जुन जागो,

अपने शस्त्र उठाओ तो !

‘असत्’दमन की पावन-


शिव शुभ रीति निभाओ तो !!





!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!



‘पापों का दुर्योधन ’उठ कर,उठा रहा सर इधर उधर |

होने लगा ‘शान्ति-कुन्ती’ का, संयम देखो तितर बितर !!

ज़ार ज़ार रोती है, इसको, धीरज तनिक बँधाओ तो !

मत सोओ हे अर्जुन जागो,

अपने शस्त्र उठाओ तो !!१!!



 

‘मानवता’ बन् गयी ‘द्रौपदी’, ‘चीर-हरण’होने वाला |

चाहे अनचाहे नारी का‘शील-हरण’होने वाला ||

‘दुश्शासन’के ‘अंगुल-चंगुल’से तुम इसे छुड़ाओ तो !!



मत सोओ हे अर्जुन जागो,

अपने शस्त्र उठाओ तो !!२!!


  


लोभ, स्वर्ण के और धरा के,बने हुये ‘दुर्दम कौरव’ |

नाच रहे,मद भरे कुहिंसक कृत्य-नृत्य कलुषित-रौरव ||

लो ‘गाण्डीव’,’क्रान्ति’का कर में,’इन’का वंश मिटाओ तो !!



मत सोओ हे अर्जुन जागो,

अपने शस्त्र उठाओ तो !!३!!




 

 

न्याय-नीति ‘गान्धारी’ बन कर,नयनों पर पट्टी बाँधे |

नेता बने हुये ‘धृत-राष्ट्र’, होठ सिले चुप्पी साधे||

‘कर्म’,’धर्म’ को न्याय दिलाने,हा हा कार मचाओ तो !!



मत सोओ हे अर्जुन जागो,

अपने शस्त्र उठाओ तो !!४!!



  
  

धनवादी तस्कर,उत्कोची’ कितने ‘कंस’ यहाँ जागे !

सोये हैं ‘बल-वीर’ कर्म से,चुरा चुरा कर मन भागे ||

“देवदत्त” में ‘शब्द’ फूँक कर, उसका ‘नाद’ जगाओ तो !!

मत सोओ हे अर्जुन जागो,

अपने शस्त्र उठाओ तो !!५!!



 

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साहित्य समाज का दर्पण है |ईमानदारी से देखें तो पता चलेगा कि, सब कुछ मीठा ही तो नहीं , कडवी झाडियाँ उगती चली जा रही हैं,वह भी नीम सी लाभकारी नहीं , अपितु जहरीली | कुछ मीठे स्वाद की विषैली ओषधियाँ भी उग चली हैं | इन पर ईमानदारी से दृष्टि-पात करें |तुष्टीकरण के फेर में आलोचना को कहीं हम दफ़न तो नहीं कर दे रहे हैं !!

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