हे गुरु !ज्ञान बिखेरो जग में !
!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
उपदेशक माया में लिपटे |
ज्ञान की चादर में सिलबटें ||
चिंतन, मनन संकुचित कितने !
बोध-मन्त्र हैं सिकुड़े, सिमटे ||
मानव के मन की पाटी में -
'प्रेरण'-शब्द उकेरो जग में !!
हे गुरु ज्ञान बिखेरो जग में!!१!!
कितने लोभी धर्म-प्रचारक !
धन से बिके हैं आज विचारक ||
व्यवसाई हो गये हैं देखो-
इस सामाज के कई सुधारक ||
शंख बजा कर,अलख जगाकर -
सोये हुओं को टेरो जग में ||
हे गुरु ज्ञान बिखेरो जग में !!२!!
तुम "प्रसून"की गुहार सुन् लो|
गुरुवर,मन की पुकार सुन् लो !!
बिगड़ाहै परिवेश जगत् का-
कर दो थोड़ा सुधार सुन् लो !!
वशिष्ठ,कौटिल्य,कबीर, गोरख!
मन्त्र मोहिनी फेरो जग में ||
हे गुरु ज्ञान बिखेरो जग में !!३!!
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