हे भारत राष्ट्र जगो!जगो!!
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आलस्य और अघ तजो तजो !
हे भारत राष्ट्र ,जगो! जगो!!
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तुम फूंको शंख प्रेरणा का |
गाओ नव राग चेतना का ||
'अनुचित परिवर्तन'के घन ने -
बरसाया नीर वेदना का ||
'संस्कृति' का तन है दुखा-दुखा |
देखा इसका मन बुझा बुझा ||
इस प्राणों में तन्द्रा है |
नयनों में मद है,निद्रा है ||
यह निद्रा औ तन्द्रा टूटे -
बन कर के भेरी बजो बजो ||
हे भारत राष्ट्र! जगो जगो !!१!!
'अविवेक' ने जाल बिछया है |
अज्ञान का खेल रचाया है ||
मानव को दास बना कर के -
उँगली पर इसे नचाया है ||
मन बुद्धि पे नीरस पत्थर हैं |
व्यवहार हुए अति बर्बर हैं ||
चेतना सुन्न ज्यों किये नशा |
इस चमक-दमक में फँसा फँसा ||
'अविवेक' शत्रु से लड़ने को -
शस्त्रों-अस्त्रों से सजो सजो ||
हे भारत राष्ट्र जगो जगो !!२!!
अपनी गरिमा को पहचानो |
तुम जगद्गुरु थे यह जानो ||
यह विश्व तुम्हारा अनुगत था
तुम अग्रेसर थे यह मानो ||
तुम थे "प्रसून" नंदन वन के |
दे कर सुगन्ध जग में महके ||
सारे जग में डंका बजता |
जो भी सुनता पीछे चलता ||
अपनी वह शक्ति बटोरो फिर -
इतिहास पुराना रचो रचो ||
हे भारत राष्ट्र जगो जगो !!३!!
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