तज कर वीणाअरे जागरण शंख बजाओ !
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माता सोई 'मानवता' है इसे जगाओ |
कुम्भकर्ण सी इसकी निद्रा इसे भगाओ ||
नये चेतना के स्वर नभ में आज सजाओ |
तज कर वीणा अरे जागरण -शंख बजाओ !!
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अन्धकार का जाल अकट है |
इस तम में 'अघ' बड़ा विकट है||
विवेक मानो हुआ बधिर है -
विचित्र सा छाया संकट है ||
छोड़ के लोरी मेरी माता -
इनको दीपक राग सुनाओ||
और अँधेरे दूर भगाओ ||
तेज से तुम दस दिशा सजाओ ||
तज कर वीणा अरे जागरण -शंख बजाओ !!१!!
स्वार्थ भरी हर ओर कलह है |
नाश-राग में हिंसा-लय है ||
देखो तो माँ समय से पहले -
आने वाली यहाँ प्रलय है ||
इस जलती ज्वाला में हे माँ !
रस मय 'मेघ-राग' बरसाओ ||
गीत संधि के कोंई गाओ |
विनाश की यह आग बुझाओ ||
तज कर वीणा अरे जागरण -शंख बजाओ !!२!!
मैली सोच कर्म हैं मैले |
कुछ मानव- पशु बने बनैले ||
जल, थल, गगन, वायु को दूषित -
करते, खेल घिनौने खेले ||
"प्रसून"इन भटके लोगों को -
हे मैया आ कर चेताओ ||
सत्कर्मों में इन्हें लगाओ |
इनको इनका पंथ सुझाओ ||
तज कर वीणा आज जागरण-शंख बजाओ !!३!!
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