हालात वतन के बद से बद और असहनीय होते जा रहे हैं |अभी देश की बेटियों की आये दिन 'दुर्दशा' की पीड़ा से उबरे नहीं, लों कल ही मुजफ्फर नगर ज़िले की खूनी आग की खबर दिल पर चोट पहुँची है |दोनों पर एक एक रचना |
(सारे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार)
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‘नर-पिशाच’ यह
पहन कर, ‘ज्ञान के उजले वस्त्र’ |
‘कपट तपस्वी’ छा
गया, ‘ज्ञानी’ बन सर्वत्र ||
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कभी ‘दूधिया’ बन गया, कभी ‘कोयला-चोर’ |
‘मदिरा का तस्कर’ कभी, यह ढोंगी बरज़ोर’ ||
कभी ‘तांत्रिक’ बन गया, ‘तन्त्र-कुविद्या’ सीख |
अपनाई थी ‘बलि-प्रथा’, चला ‘पाप की लीक’ ||
पछताये ‘चेले’
कई, खो कर अपने पुत्र |
‘कपट तपस्वी’ छा
गया, ‘ज्ञानी’ बन सर्वत्र ||१||
कथा वाचने में निपुण, यह ‘छलिया’ वाचाल |
समझ न पाये हम कभी, इस की ‘टेढी चाल’ ||
‘प्रवचन’ की चलती रही, इस की ‘खुली दुकान’ |
बक बक करता ‘बकासुर’, हम न सके पहँचान |
‘पूँजी-पति’ यह
बन गया, करके धन एकत्र |
‘कपट तपस्वी’ छा
गया, ‘ज्ञानी’ बन सर्वत्र ||२||
दिखा ‘नमूने’ ज्ञान के, बाँट रहा ‘अज्ञान’ |
‘प्रसून” इस के ‘छद्म’ से, हम सब थे अनजान ||
‘पाप-कर्म’ करता रहा, ‘धर्म की ढपली’ पीट |
जैसे ‘फल’ को खोखला, करता कोई ‘कीट’ ||
‘धर्म’ का वध
करते रहे, ‘पाखण्डों के शस्त्र’ |
‘कपट तपस्वी’ छा
गया, ‘ज्ञानी’ बन सर्वत्र ||३||
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(देश में हिंसा की आग)
(१) डूबा देश बबाल
में |
(गज़ल)
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भीतर भीतर पनपी ‘कीचड़’, डूबा देश ‘बबाल’ में |
‘वतन’ का क्या होगा हम उलझे उलझे इसी ‘सवाल’
में ||
कहीं ‘सन्त’ कर चुके ‘घिनौने काम’ ‘ज्ञान’
की आड़ में –
पड़ी ‘नज़र शैतानी’ हम पर, है देखो इस साल
में ||
अरे मुजफ्फर नगर जिले में,’आग’ लगाई ‘हिंसा’
ने-
देखो तो जाकर के क्या क्या हुआ है शाहर
कवाल में ||
धधकी ‘आग’ शामली में है,’अधर्म-पथ’ पर ‘धर्म’
चले-
पता नहीं ‘मानवता’ उलझी, किस ‘पिशाच’ के
जाल में ||
किस की साजिश बनी नुकीली, ‘घायल’ बदन ‘सभ्यता’
का-
ढंग से देखो मिल जायेगा, कुछ तो ‘काला‘ ‘दाल’
में ||
तुम कहते हो हुई ‘तरक्की’,सब का हुआ ‘विकास’
में –
पर मैं कहता ‘विकास’ उलझा है ‘करील’ की
डाल में ||
‘विकार’ कितने भारत की धरती पर अब हैं
पनप रहे-
‘प्रसून” ज़हरीले उग आये, ‘प्रेम-कमल के
ताल’ में ||
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