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‘भारतीयता’ की मिटी, तुझसे जग में
‘साख’ !
तू निकला ‘विषफल’ जिसे, समझा ‘मीठा
दाख’ !!
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दुनियाँ में ज़ाहिर हुई, है ‘काली
करतूत’ |
‘गहराई’ में दबे थे, पाप के तेरे
सबूत ||
बड़े घिनौने थे सभी, तेरे पाप अकूत |
निगले ‘कड़वे फल’ समझ, कर ‘मीठे
शहतूत’ ||
‘शुक्ल-पक्ष’ को कर दिया, है
‘अँधियारा पाख’ |
तू निकला ‘विषफल’ जिसे, समझा ‘मीठा
दाख’ !!१!!
लगता था ‘गलमाल’
तू, निकला ‘विषधर नाग’ |
बाहर ‘उजला हंस’
तू, भीतर ‘’काला काग’ ||
तेरे मन में
‘काम’ की, गयी ‘कामना’ जाग |
जला के तूने
‘वासना, की अनियंत्रित आग’ ||
‘नारी के सम्मान’ को, किया जला कर
‘राख’ |
तू निकला ‘विषफल’ जिसे, समझा ‘मीठा
दाख’ !!२!!
‘प्रसून” श्रद्धा-आस्था, के हो गये मलीन |
‘भक्ति के भँवरे’ देख तू, शंकाओं में लीन ||
‘कपट-तपस्वी’ कुटिल तू, तेरा थोथा ज्ञान |
तन्त्र-मंत्र सब खोखले, बचा दम्भ- अभिमान ||
अपने ‘कुकर्म’ का ‘कुफल’, अब तू खुद
ही चाख !
तू निकला ‘विषफल’ जिसे, समझा ‘मीठा
दाख’ !!३!!
दाख=अंगूर |
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दूसरी कड़ी भी बढ़िया -
जवाब देंहटाएंआभार आदरणीय-
गुरुजनों को प्रणाम-
बहुत सटीक
जवाब देंहटाएंlatest post: सब्सिडी बनाम टैक्स कन्सेसन !
जितनी भी कड़ी भर्त्सना की जाये कम होगी
जवाब देंहटाएंसच्चाई ब्यान करती रचना