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रविवार, 1 सितंबर 2013

मंगल-गीत(७)आये कोई पैगम्बर अवतारी !

=====================जि जिससे पायें दिशा देश के, सारे ही नर नारी |
मेरे वतन में आये कोई 'पैगम्बर अवतारी' !!
‘वतन-परस्ती’ क्या होंती है वह हम को समझाये |
कलह की हर  उलझी गुत्थी को जो आ कर सुलझाये ||
अपनी ‘प्रेम-मोहिनी’ से वह सब का हृदय रिझाये |
‘हिंसा की खूरेज़ आग’ की जलती ज्वाल बुझाये ||
उस के पीछे एक दिश चले देश की जनता सारी |
मेरे वतन में आये कोई पैगम्बर अवतारी !!१!!


‘अपनी वाणी के बादल’ से ‘सत्य-सरस’ बरसाये |
‘भड़काऊ भाषण’ की ‘बिजली’, जनता पर न गिराये ||
डींग हाँक कर ‘मत झूठी बातों’ से गाल बजाये |
पाखण्डों के जाल बिछा कर, हम को जो न फँसाये ||
अपने ‘दुर्मुख’ से मत उगले, जहाँ तहाँ ‘मक्कारी’ |
मेरे वतन में आये कोई पैगम्बर अवतारी !!२!!


चाहे बजाये ‘’प्रीति-बाँसुरी’, ‘धनुष-वाण’ टंकारे |
ले ‘सुधार का चक्र’ हाथ में, देश को मेरे सुधारे ||
‘प्रेम-अहिंसा-सत्य’ से ‘हिंसा औ असत्य’ को मारे |
‘बाइबिल’ या ’क़ुरान’ से चाहे, ‘बिगड़ा धर्म’ सँभारे ||
कोई ‘ग्रन्थ’, किसी आयुध’ से, हर ले विपदा सारी |
मेरे वतन में आये कोई पैगम्बर अवतारी !!३!!


यह भारत ‘एकता की बगिया’, आकार इसे सजाये |
‘प्रीति-कोकिलाओं’ को जीवन दे, उनको चहकाये ||
मिटते ‘स्नेह-पराग’ रोक ले, कर के जतन बचाये |
मुर्झाये “प्रसून”को जीवन, दे, उन को महकाये ||
वर्षों से दुःख में  डूबा ‘यह, मधुवन’,रहे सुखारी |
मेरे वतन में आये कोई पैगम्बर अवतारी !!४!!

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3 टिप्‍पणियां:


  1. बहुत अच्छी रचना ! उत्कृष्ट !


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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
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साहित्य समाज का दर्पण है |ईमानदारी से देखें तो पता चलेगा कि, सब कुछ मीठा ही तो नहीं , कडवी झाडियाँ उगती चली जा रही हैं,वह भी नीम सी लाभकारी नहीं , अपितु जहरीली | कुछ मीठे स्वाद की विषैली ओषधियाँ भी उग चली हैं | इन पर ईमानदारी से दृष्टि-पात करें |तुष्टीकरण के फेर में आलोचना को कहीं हम दफ़न तो नहीं कर दे रहे हैं !!

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