कभी कभी मन समाज के विद्रूप को देख कर ईश्वरोन्मुख हो उठता है | यह एक अभिधा प्रधान गीत है | आज पुन: क्रिशन या अन्य पापोद्धारक अवतार की संसार को ज़रूरत है |
वजाय सोलह कलाओं के चौसठ कलाओं के स्वामी की |
इस भजन में थोड़ा सा आधुनिक पुट है दूध में जल की तरह |
(सारे चित्र 'गूगल-खोज'से साभार)
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नन्द के थे वे
प्यारे दुलारे ‘ललन’ |
थे यशोदा की
‘आँखों के तारे’ ललन ||
सारे वृज के
‘कन्हैया’ हुये अवतरित-
जब था पीड़ा से भारत लगा काँपने |
था लिया जन्म भारत में घनश्याम ने ||१||
रंग कोई भी उन पे है चढता नहीं |
असर उन पर किसी का भी पड़ता नहीं ||
लिप्त होता नहीं ‘रंग काला’ कभी-
इस लिये उन को काला किया ‘राम’ ने |
था लिया जन्म भारत में घनश्याम ने ||२||
कंस के आचरण
से हिली थी ‘धरा’ |
औ ‘मनुजता’
गयी, टूट कर चरमरा ||
‘न्याय का
चक्र’ कान्हां ने हाथों लिया-
हाँ ‘रसातल’ में गिरती ‘धरा’ थामने |
था लिया जन्म भारत में घनश्याम ने ||३||
त्याग दे
‘छल’ से मैला ‘कपट’ तू ज़रा |
‘मन की गीता
के पन्ने’ पलट तू ज़रा ||
अपने
‘अपकर्म’ गिन ! अपने सत्कर्म’ गिन !!
‘पुण्य-पापों’ को कर आमने सामने |
यह सिखाया हमें कृष्ण घन श्याम ने ||४||
बहुत सुन्दर “प्रसून”, ‘वृज के उद्द्यान’ के |
कृष्ण कारण थे ‘द्वापर के उत्थान’ के ||
‘सीप’ में बन्द कुछ ‘मोतियों’ की तरह-
उन की यादें संजोयीं, थीं ‘वृज-धाम’ ने |
था लिया जन्म भारत में घनश्याम ने ||५||
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शुभकामनायें आदरणीय-
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुति-
सादर नमन-
रंग कोई भी उन पे है चढता नहीं |
जवाब देंहटाएंअसर उन पर किसी का भी पड़ता नहीं ||
लिप्त होता नहीं ‘रंग काला’ कभी-
इस लिये उन को काला किया ‘राम’ ने |
था लिया जन्म भारत में घनश्याम ने ||२||
bahut sundar bat kahi hai devdutt ji .