बजा के मधुरिम ढोल, होली आई है |
कर के प्रेम-किलोल, होली आई है ||
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‘प्रेम’ में ‘निठुर विषाद’ न डालो |
‘शान्ति’ में
अवसाद न
डालो ||
वतन में ‘प्रान्त-वाद’ न डालो |
‘फ़सल’ में ‘विष
की खाद’ न डालो ||
जीवन है अनमोल, होली आई है |
लगा के उस का मोल, होली आई
है ||
बजा के मधुरिम ढोल, होली आई है ||१||
लोलुपता ‘यौवन’ पर धन की |
प्यास बढ़ी जिनमें
‘जीवन’ की ||
कपटी और कुचाली-सनकी |
नकाब डाले भोलेपन की ||
खोल के उन की पोल, होली आई है |
तोड़ के
‘शंख-ढपोल’, होली आई है ||
बजा के
मधुरिम ढोल, होली आई है ||२||
‘मानवता-हिरनी’ अति भोली |
‘कपट की नागिन’ डसने
दौड़ी ||
चाल है ‘छल’ की बड़ी निगोड़ी |
खाल ‘गधों’ की ‘शेर’
ने ओढी ||
हटा के, ‘ओढ़ा खोल’, होली आई है |
दिखा के ‘असली
चोल’, होली आई है ||
बजा के मधुरिम ढोल,होली आई
है ||३||
‘बेशर्मी’ का नयन में ‘अंजन’ |
‘कामी’ हो गये,
‘भोले खंजन’ ||
‘काम-वासना’ का ‘रति-प्रणयन’ |
‘मर्यादा-चादर’
में सिमटन ||
मिटा के सारे झोल, होली आई है |
कर के प्रेम-किलोल, होली आई है |
बजा के मधुरिम ढोल, होली आई है ||४||
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