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जैसे ‘पंछी’ कोई पकड़े
आ कर बाज |
‘मज़लूमों’ पर पकड़ है, ‘ज़ुल्म’ की ऐसी
आज ||
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‘स्यार’, ‘भेड़िया’, ‘लोमड़ी’, का लाख कर आक्रोश |
डरे डरे सहमे
हुये, हैं भोले
‘खरगोश’ ||
‘अपराधों के गिद्ध’ हैं,
उड़ते चारों
ओर |
‘समाज-वन’ में किस
तरह, नाचें ‘प्रेम के मोर’ ||
चाह
रहीँ ‘खूंरेजियाँ’, करना अपना
राज |
‘मज़लूमों’ पर पकड़ है, ‘ज़ुल्म’ की ऐसी आज
||१||
‘आचरणों की
‘मछलियों’ का अति बुरा है हाल |
पड़ा हुआ उन पर निठुर, ‘वित्त-वाद’ का जाल ||
‘जमाखोरियों’
के हुये, ‘अजगर
जैसे पेट’ |
‘हकों’ के कितने ‘मेमने’, चढ़े हैं इन की भेंट ||
आज तलक भी ‘वक्त’ का बदला नहीं मिजाज़
|
‘मज़लूमों’ पर पकड़ है, ‘ज़ुल्म’ की ऐसी
आज ||२||
रोको ‘जलती ईर्ष्या’,
उगल रही है
‘ताप’ !
मत उगलो अब ‘द्वेष’ का, ‘आँच भरा सन्ताप’ !!
‘दावानल’ सी जल रही, ‘घृणा की भीषण आग’ |
करके यत्न संवारिये,
‘सुमनों के अनुराग’ !!
‘अमन’ चला मुहँ मोड़ कर, दो उस को आवाज़
|
‘मज़लूमों’ पर पकड़ है, ‘ज़ुल्म’ की ऐसी
आज ||३||
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प्रभावी प्रस्तुति-
जवाब देंहटाएंआभार -
.बहुत सुन्दर भावनात्मक प्रस्तुति .एक एक बात सही कही है आपने . आभार हाय रे .!..मोदी का दिमाग ................... .महिलाओं के लिए एक नयी सौगात आज ही जुड़ें WOMAN ABOUT MAN
जवाब देंहटाएंबहुत ही सार्थक प्रस्तुति,आभार.
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