मेरी एक बहुत पुरानी पुस्तक- -हेशिव की बहुत लम्बी रचना का संक्षिप्त स्वरूप, सब को 'महा शिवरात्रि' की
शुभकामनाओं के साथ प्रस्तुत ! रचना में 'व्यष्टि ब्रह्म' के स्थान पर 'समष्टि ब्रह्म' को जागृत करने का प्रयास है ! (चित्र 'गूगल-खोज' से )
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हे शिव जागो ! निद्रा त्यागो !! यहाँ मची है , ‘भागो !
भागो !!’
तुम ज्ञानी हो, विज्ञानी हो | हे शिव तुम अवढर दानी हो ||
नेत्र तीसरा खोलो, देखो ! अपनी ‘भेदी दृष्टि’ को फेको !!
देखो कितने ‘सर्प विषैले’ | कुछ जत्थे में, कई अकेले ||
‘अपकर्मों’ में ये अलबेले | बड़े घिनौने खेल ये खेले ||
निज ‘बाँबी’ से निकल रहे हैं | कर जनता को विकल रहे हैं ||१||
इनकी ‘बाँबी’
हर बस्ती में | ये स्वच्छन्द बहुत मस्ती में ||
फैलाये
‘आतंकों के फन’ | इन से डरे हुये सारे जन ||
इन से
पीड़ित दुनियाँ सारी | ‘पैशाचिकता’ इन से हारी ||
इन से
हार गयी मक्कारी | ये सारे हैं ‘इच्छाधारी’ ||
मन
चाहे ये काम हैं करते | मनचाहे ये रूप हैं धरते ||
तरह
तरह के वेश बदलते | हर परिधान में सब को खलते ||२||
लगते
हैं तो हैं ये ‘वैरागी’ | पर इन के आचरण हैं दागी ||
इन
में कुछ नकली अभिनेता | इन में से कुछ दीखते नेता ||
इन में है विष अपराधों का | इन में विष झूठे
वादों का ||
खा पी
कर हैं ये मुस्तंडे | मुफ़्त की खाते हैं कुछ गुण्डे ||
राजनीति
में दाग लगाते | ‘विश्व-शान्ति’ में ‘आग लगाते’ ||
नकली
शिव को भले ये लगते | और उन्हीं के गले ये लगते ||३||
हैं उनके हाथों के मोहरे | आचरणों से
हैं ये दोहरे ||
ये उन को हैं चढ़ावा देते | वे इन को
हैं बढ़ावा देते ||
तुम्हें और क्या अधिक सुनाऊँ ? सर्वज्ञ
तुम्हें मैं क्या बताऊँ !!
अब जागो तुम बहुत सो चुके ! गहरी नींद
में बहुत खो चुके ||
हे ‘समाज शिव’ ! उठो उठो तुम ! ‘अशिव-नाश’
में जुटो जुटो तुम !!
इन ‘पापी साँपों’ को मेटो ! या फिर इन
के पाप समेटो !!४!!
जल्दी ‘नेत्र तीसरा’ खोलो ! ‘निद्रा
के आसान’ से डोलो !!
अपनी ऊर्जा को पहचानो ! अपनी ‘छिपी शक्ति’
को जानो !!
तुम चाहो तो इन को मारो ! या फिर चाहे
इन्हें सुधारों !!
बस, इन के आचरण निखारो !
शिर-गंगा-धारा से पखारो !!
गिरे हुये हैं, इन्हें उठाओ ! तब फिर
इन्हें गले लगाओ !!
जो न सुधरें उन्हें मिटाओ ! अपनी ‘जन-गण-शक्ति’
जुटाओ !!५!!
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शुभकामनायें आदरणीय-
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना -
हर हर बम बम
श्री ग़ाफ़िल जी आज शिव आराधना में लीन है। इसलिए आज मेरी पसंद के लिंकों में आपका लिंक भी सम्मिलित किया जा रहा है।
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल सोमवार (11-03-2013) के हे शिव ! जागो !! (चर्चा मंच-1180) पर भी होगी!
सूचनार्थ!
सुन्दर रचना,चित्र भी प्रसंसनीय है निचे से दूसरे को छोड़कर.
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