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राजनीति की आड़ में करते, बड़ेघिनौने काम कई ||
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सभी हदों को पार हो गये |
ये कितने ‘मक्कार’ हो गये ||
करें ‘खुशामद’ से ये ‘आमद’-
कितने ‘शेर’, ‘सियार’ हो गये ||
‘कुर्सी के घुन’ चिपके ‘कुर्सी’ से,ताज कर के ‘लाज-शर्म’|
छोड़ के ‘मेहनत’, ‘काले धन’ से, करते ‘बड़े हराम’ कई||
राजनीति की आड़ में करते, बड़ेघिनौने काम कई ||१||
‘नशे’ में ‘मदहोश’ ये बैठे |
खो कर ‘होश’, ‘मोद’ में बैठे ||
‘सफ़ेद झूठ’ की ‘हाँ में हाँ’ कर-
बने ‘सफ़ेद पोश’ हैं बैठे ||
कर के ‘यारी’, दगा करें जो, ‘गद्दारी’ में हैं माहिर |
छू कर पाँव जो मारें ‘गान्धी’, ऐसे ‘नाथूराम’ कई ||
राजनीति की आड़ में करते, बड़ेघिनौने काम कई ||२||
मन में ‘पापों भरे खोट’ भर |
‘दुखी चोट’ पर ‘नयी चोट’कर||
बन कर ‘अवसरवादी गिरगिट’-
‘विश्वासों’ का गला घोंट कर ||
‘अपनी मेहनत’,अपने कर्म’ से, इनको क्या लेना देना !
‘औरों की मेहनत’ की चोरी, करें कमाते ‘नाम’ कई ||
राजनीति की आड़ में करते, बड़ेघिनौने काम कई ||३||
‘फ़र्ज़’ से फिरते भागे भागे |
बिना काम के ‘माल’ ये माँगें ||
इनका कोई विरोध करता-
उस पर ‘कुटिल’,गोलियाँ दागें ||
इनसे हार गयी ‘मक्कारी’,’सज्जन’ बने ‘लुटेरे’ हैं |
लूट ‘खज़ाना राज कोष का’, भरते निज घर ‘दाम’ कई ||
राजनीति की आड़ में करते, बड़ेघिनौने काम कई ||४||
करते हैं ये ‘जमाखोरियाँ’ |
‘खाद’ बन गयीं, कई ‘बोरियाँ’||
दिखते हैं ‘ईमानदार’ पर-
मौक़ा मिले तो करें ‘चोरियाँ’ ||
‘जनता’ भूखों मरती इनको, इसकी कुछ परवाह’ नहीं |
‘अन्दर ग्राउण्ड’ छुपे हैं इनके, ‘भरे हुये गोदाम’ कई ||
राजनीति की आड़ में करते, बड़ेघिनौने काम कई ||५||
‘स्विसबैंक’ में ‘खाते’ इन के |
‘नेताओं’ से ‘नाते’ इनके ||
‘विदेश’ के ‘ऊँचे स्कूल’ में-
बच्चे पढने जाते इन के ||
‘पाँच सितारा होटेल’ जा कर, ‘सुरा-सुन्दरी’ में डूबे-
‘मुफ़्त का माल’ उड़ा कर करते, हैं ‘रंगीनी शाम’ कई ||
राजनीति की आड़ में करते, बड़ेघिनौने काम कई ||६||
‘आदर्शो’ के ये ‘ढोंगी’ हैं |
“प्रसून”, ‘ये योगी’,’भोगी’ हैं ||
‘नदिया’ कैसे पार करेंगे-
‘छेदों वाली’ ये ‘डोंगी’ हैं ||
रोज़ मिले ‘सम्मान’,’सभा’ में,’अखबारों’ में रोज़ छपें |
खुद खरीद कर ‘शाल’ ओढ़ कर, लेते ‘मान-इनाम’ कई||
राजनीति की आड़ में करते, बड़ेघिनौने काम कई ||७||
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