आज का पावन पर्व बहुत महत्वपूर्ण है भारतीय संस्कृति के लिये | अनेक पौराणिक मान्यतायें इस पर्व से ऐसी जुड़ी हैं जो 'सामाजिक संक्रान्ति', 'सकारात्मक परिवर्तन' एवं 'शान्ति-स्थापना' से सम्बन्ध रखतीं हैं |
इसी दिन देवाधिदेव महादेव भोले शंकर ने त्रिपुरासुर का वध किया था अर्थात 'पैशाचिक अलगाववाद' का अंत किया था | तारकासुर दैत्य के तीनो पुत्र-ताराक्ष,कमलाक्ष और विद्युन्माली नाम के त्रिपुरासुर नाम से जाने जाते हैं | ये तीनों अलगाव वादी विभाजन वादी,धूर्त ही नहीं अपितु अति भोगी विलासी और अत्याचारी एवं कुटिल भी थे | इन तीनों ने क्रमश:स्वर्णपुर, राजतपुर और लौहपुर नाम के लोक बसा कर अलग रहते थे, बिलकुल आज के 'अंडरवर्ल्ड' अपराधियों की भाँति छुप कर अपराध करने के आदी थे | तीनों के नाम यह स्पष्ट कटे हैं कि तीनो ही आकर्षक, सुदर्शन एवं सुरूप्वान थे किन्तु घातक अपराधी थे | समाज रूपी शिव आज इन अलगाव वादियों का नाश करे तो गंगास्नान सार्थक है |
इसी दिन पाण्डव-अग्रज युधिश्ठिर ने कार्त्तिक शुक्ल अष्टमी से चतुर्दशी तक गंगा-स्नान किया तथा गंगा-तट पर यज्ञ भी किया तथा रात्रि में सारी मृत आत्माओं की शान्ति हेतु 'दीप-दान' किया | इस प्रकार
गढ़मुक्तेश्वर तीर्थ की स्थापना हुई |
यह मास शिवा,सम्भूति,संतति,प्रीति,अनुसूया और क्षमा नाम की छ: कृत्तिकाओं का मास है | ये छहों क्रमश: 'कल्याणकारी शक्ति', 'निर्माणकारी शक्ति', 'श्रेष्ठ उत्तराधिकारी उपलब्धि', 'प्रेम-शक्ति','सत्य-निष्ठा' तथा क्षमा शक्ति' की प्रतीक हैं और समाज की सुधार हेतुं आवश्यक हैं और 'समाज-सुधार' की संकल्प दायिनी हैं |
'सर्व धर्म समन्वय वादी',अति उदारता के अवतार समाज सुधारक निर्लोभी, सन्मार्ग गामी और
पूर्णसात्विक ज्ञान मार्गी सन्त 'गुरु नानक देव' का जन्म- दिन भी आज के दिन ही हुआ था |
वर्ष भर के दूषित विचारों के मल से मन को शुद्ध कर के नवीन शुद्ध विचारों को स्थापित करें अर्थात मन का स्नान करें तो कैसा रहे 'गंगा-स्नान' का यह पावन पर्व ?
गंगा का अर्थ है-'निरन्तर गतिशील ऊर्जा' | किसी भी नदी को गंगा कहा जा सकता है | किसी भी 'प्रदूषण-रहित नदी' में स्नान सार्थक हो सकता हैं | हाँ, 'भागीरथी गंगा, में स्नान, एक 'दृढ़ इच्छा-शक्ति' का विकास और उस का नवीनीकरण में विशेष सहयोगिनी हैं | स्व-स्नान
के साथ 'नदी' को भी तो स्नान करवायें |यानी नदियों को 'प्रदूषणों के मल' से मुक्ति दिलायें | हर नदी एक देवी है | क्या 'नदी रूपी देवी' का 'स्नान', 'देश रूपी मन्दिर' में
समुचित नहीं है ?
आज 'गंगा-स्नान' का यह पर्व हम नई सोच,'नयी विचार-धारा' एवं प्रगतिवादी सुधारवादी आडम्बर विहीन और पाखण्ड रहित दृष्टिकोण अपना कर मनायें !!
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