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सोमवार, 19 नवंबर 2012

दीपावली की रचनायें(९) यार दिवाली है !(एक व्याजोक्ति)

(दीपावली की बची खुची याद) 

(सभी चित्र गूगल-खोज से साभार)

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आओ, मिल कर दीप जलायें यार, दिवाली है !
देखो, लायी ‘मीठा मीठा’ प्यार’, दिवाली है !!
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कल ‘नर्कासुर’ मार दिया है, ‘कुँवर कन्हैया’ ने |
‘लालन’ को ‘लाड़ दुलार’ दिया है, ‘जसुदा मैया, ने ||
‘अँधियारी का दानव’ मार के, ‘ज्योति’ बाँटती है-
‘प्रकाश’ का होता यारो, ‘अवतार’ दिवाली है !!
आओ, मिल कर दीप जलायें यार, दिवाली है !!!१!!

ले कर ‘थाल दीप का’, पूजन करने सभी चले |
‘आँगन-आँगन’, ’रंगोली’ को, देख के मन मचले ||
‘वैमनस्य’ की मिटी ‘मलिनता’, ‘गली-गली’ ‘उजली’-
‘प्रदूषणों’ को हर, हरती, ’अंधियार’ दिवाली है ||
आओ, मिल कर दीप जलायें यार, दिवाली है !!२!!

‘महँगाई’ ने कर दीं सूनी ‘घड़ियाँ’ जीवन की |
‘बुझी बुझी’ सी, देखो तो हैं ‘फुलझड़ियाँ मन की’ ||
फिर भी भूल, ‘गरीबी के दुःख’, ‘खुशी’ में सब झूमे-
‘घड़ियाँ हर्ष की’ ले आई, दो चार दिवाली है ||
आओ, मिल कर दीप जलायें यार, दिवाली है !!३!!

जुवा खेलना, आगजनी की, घटनायें मत हों !
चोरी, लूट-खसोट, अपहरण-विपदायें मत हों !!
बारूदी हो खेल न खूनी,अगर देश भर में –
केवल तब ही समझो कि, ‘उपहार’ दिवाली है ||
आओ, मिल कर दीप जलायें यार, दिवाली है !!४!!


बना के ‘ईंधन’, ‘जन-चेतना’ में आग लगा दें हम |
‘दुःख-दारिद्रय के अंधकार’ को, दूर भगा दें हम ||
‘महँगाई’ को मिटा के, ‘भ्रष्टाचार’ मिटा दें यदि-
तब समझो मेरे साथी, ‘उपहार’ दिवाली है ||
आओ, मिल कर दीप जलायें यार, दिवाली है !!५!!

‘गोवर्द्धन’ की ‘पूजा’ कर के, हम सब यह ‘व्रत’ लें |
‘दुधारु पशु धन’ भारत भर में, ‘घर घर खूब पलें !!
दूध-दही, घी असली, सस्ते, मिलें जो खाने को-
केवल तब कर सकती ‘जग-उद्धार’ दिवाली है ||
आओ, मिल कर दीप जलायें यार, दिवाली है !!६!!

‘खील-खिलौने मीठे मीठे’ “प्रसून” से खिलते |
हाथ बढ़ा कर, एक दूसरे से ‘हम सब’ मिलते ||
उधर ‘खेत, वन्-बाग’, ‘सुमन के गुच्छे’ ले आये-
‘शरद की देवी’ का ‘स्वागत-सत्कार’ दिवाली है ||
आओ, मिल कर दीप जलायें यार, दिवाली है !!७!!


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साहित्य समाज का दर्पण है |ईमानदारी से देखें तो पता चलेगा कि, सब कुछ मीठा ही तो नहीं , कडवी झाडियाँ उगती चली जा रही हैं,वह भी नीम सी लाभकारी नहीं , अपितु जहरीली | कुछ मीठे स्वाद की विषैली ओषधियाँ भी उग चली हैं | इन पर ईमानदारी से दृष्टि-पात करें |तुष्टीकरण के फेर में आलोचना को कहीं हम दफ़न तो नहीं कर दे रहे हैं !!

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