सारे चित्र 'गूगल-खोज' समूल चित्रकारों को सधन्यवाद -उद्धृत ---
‘नीति का नाटक’ गन्दा है |
फिर भी हिन्दी जिन्दा है ||
‘भारी भरकम पापों’ का |
‘कर्मों के सन्तापों’ का ||
सिर पर लदा पुलन्दा है |
फिर भी हिन्दी जिन्दा है ||१||
‘दीप’ की ‘जगमग ज्योति’ का-
भाव ज़रा सा मन्दा है |
फिर भी हिन्दी जिन्दा है ||२||
ए.सी.और कूलरों में |
‘पाउंड’और ‘डालरों’ में ||
बिका हुआ हर बन्दा है |
फिर भी हिन्दी जिन्दा है ||३||
जगमग जगमग चमक रहा |
युगों युगों से दमक रहा ||
जैसे सूरज-चन्दा है |
ऐसे हिन्दी जिन्दा है ||४||
‘आन’ खो चुका है अपनी |
‘शान’ खो चुका है अपनी ||
‘यह सोने का परिन्दा’ है |
फिर भी हिन्दी जिन्दा है ||५||
चारों ओर ‘बज़ारों’ में |
‘व्यवसायों’,’व्यापारों’ में ||
पनपा काला धन्धा है |
फिर भी हिन्दी जिन्दा है ||६||
उलझी ‘मान-विमर्दन’में |
“प्रसून”,‘इसकी गरदन में ||
पड़ा ‘विदेशी फन्दा’ है |
फिर भी हिन्दी जिन्दा है ||७||
$$&&**++==++**&&a
!!फिर भी हिन्दी जिन्दा है!!
===================
‘नीति का नाटक’ गन्दा है |
फिर भी हिन्दी जिन्दा है ||
***===+++***===+++===
‘भारी भरकम पापों’ का |
‘कर्मों के सन्तापों’ का ||
सिर पर लदा पुलन्दा है |
फिर भी हिन्दी जिन्दा है ||१||
‘सदाचार के मोती’ का |
‘दीप’ की ‘जगमग ज्योति’ का-
भाव ज़रा सा मन्दा है |
फिर भी हिन्दी जिन्दा है ||२||
ए.सी.और कूलरों में |
‘पाउंड’और ‘डालरों’ में ||
बिका हुआ हर बन्दा है |
फिर भी हिन्दी जिन्दा है ||३||
जगमग जगमग चमक रहा |
युगों युगों से दमक रहा ||
जैसे सूरज-चन्दा है |
ऐसे हिन्दी जिन्दा है ||४||
‘आन’ खो चुका है अपनी |
‘शान’ खो चुका है अपनी ||
‘यह सोने का परिन्दा’ है |
फिर भी हिन्दी जिन्दा है ||५||
चारों ओर ‘बज़ारों’ में |
‘व्यवसायों’,’व्यापारों’ में ||
पनपा काला धन्धा है |
फिर भी हिन्दी जिन्दा है ||६||
उलझी ‘मान-विमर्दन’में |
“प्रसून”,‘इसकी गरदन में ||
पड़ा ‘विदेशी फन्दा’ है |
फिर भी हिन्दी जिन्दा है ||७||
$$&&**++==++**&&a
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें