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गुरुवार, 27 सितंबर 2012

ज़लजला(एक भीषण परिवर्तन) ((क)वन्दना(३) गुरु-वन्दना !! हे गुरु कृपा कर दीजिये !!



सारे चित्र गूगल-खोज से साभार



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सद्बुद्धि का वर दीजिये !
हे गुरु कृपा कर दीजिये !!


!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

‘सद्ज्ञान’ को भूले हुये,मन में है ‘कंचन-कामिनी’ |

‘जल-दान को भूले हुये घन’ में है केवल ‘दामिनी’ ||



‘व्यवहार के हर बाग’ में |
‘पादप’ जले हैं ‘आग’ में ||
यह ‘दामिनी’ है आ गयी |
‘हर प्यारी क्यारी’ खा गयी ||
‘कलि-कोंपलें’ मुरझा गयीं |
‘लजवन्तियाँ’ मुरझा गयीं –

देखो तो,’‘नाज़ुक प्रीति’ की,
‘मन-दान की हर रीति’ की ||

सोया हुआ ‘विवेक’ है |
मद- अन्ध नर हर एक है ||
‘क्या है बुरा,क्या है भला’ ||
इसको भुला कर है चला ||
‘नश्वर नशीले वित्त में |
डूबे हुये हर चित्त’ में ||

‘उद्बोध’ को भर दीजिये !
‘दुर्बोध’ को हर लीजिये !!
सद्बुद्धि का वर दीजिये !
हे गुरु कृपा कर दीजिये !!१!!

 

‘मन की सुहानी काँपती’ देखो तो,’धरती’ डोलती !
होता ‘प्रलय’ कैसा निठुर,’ये भेद सारे’ खोलती ||

‘मनु-पुत्र की है कामना’ |
ओढ़े है ‘चूनर वासना’ ||
आँधी सी चलती ‘श्वास’ है |
‘हलचल’ लिये ‘निश्वास’ है ||
पहने ‘अधीरज’,’आस’ है |
करती, ‘नियति-उपहास’ है ||

काँपी है काया ‘नीति’ की ,
‘आशा’ की और ‘प्रतीति’ की ||

टूटी ‘धर्म की टेक’ है |
‘झटके’ पड़े अनेक हैं ||
आने को है यों ‘ज़लजला’ |
‘तूफ़ान’ ‘आँचल’ में पला ||
‘हल चल’ लिये ‘हर कृत्य’ में |
‘उन्मत्त ताण्डव-नृत्य’ में ||

स्थिर इसे कर दीजिये !
‘वरदायी कर’ धर दीजिये !!
सद्बुद्धि का वर दीजिये !
हे गुरु कृपा कर दीजिये !!२!!
 

‘आकांक्षा-कमलों-भरे’ जो ‘भावना के ताल’ हैं |
झोंकों से,’शान्त-तल’ हिला, ‘लहरें’ उठीं उत्ताल’ हैं ||

झरती हुयी हर पंखुरी |
उड़ती बिचारी, बेधुरी ||      
जैसे ‘कटी पतंग’ है |
‘पवनों’ से बेबस तंग है ||
‘धूमिल’ सुहाना रंग है ||
ज्यों ‘पर नुचा विहंग’ है |

असहाय, ‘चोटें’ झेलती,
‘मौसम’ की ‘हर अनीति’ की ||

मैले ‘सभी अभिषेक’ हैं |
उल्लास सब निश्शेष हैं ||
आयीं ‘दरारें’, ‘सत्य’ में |
हैं ‘मस्तियाँ’,‘असत्य’ में ||

अब शान्त ‘अम्बर’ कीजिये !

अब रोक ‘अन्धर’ लीजिये 
सद्बुद्धि का वर दीजिये !
हे गुरु कृपा कर दीजिये !!३!!

 

 


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साहित्य समाज का दर्पण है |ईमानदारी से देखें तो पता चलेगा कि, सब कुछ मीठा ही तो नहीं , कडवी झाडियाँ उगती चली जा रही हैं,वह भी नीम सी लाभकारी नहीं , अपितु जहरीली | कुछ मीठे स्वाद की विषैली ओषधियाँ भी उग चली हैं | इन पर ईमानदारी से दृष्टि-पात करें |तुष्टीकरण के फेर में आलोचना को कहीं हम दफ़न तो नहीं कर दे रहे हैं !!

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