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गुरुवार, 13 सितंबर 2012

हिन्दी–पखवाडा (हिन्दी भाषा- साहित्य के सम्मान में रचनाएँ) (१) घनाक्षरी-गीत (हिन्दी अपनाइये)


   

हिन्दी दिवस 

 की वधाई !
!!!!!!!!!!!!!!!!!!!! 


   
    
  
 (हिन्दी अपनाइये)


हिन्द देश के निवासी,हिन्दी अपनाइये |

और इस देश को यों स्वर्ग सा बनाइये ||

भाषा है ‘स्वतंत्रता की धुरी’ एक मात्र बन्धु |

भाषा में ही छुपा हुआ ‘भावना का सुधा-सिन्धु’ ||

एक भाषा,एक लिपि अपना के प्रेम से यों –

दूसरों की बात सुन,अपनी सुनाइये ||

हिन्द देश के निवासी,हिन्दी अपनाइये ||१||

 

भाषायें हैं और भी जो,उनका भी मान करें |

किन्तु उन्हें सीख इकार मत अभिमान करें ||

जो भी आये द्वार उसे आदर दुलार दे के –

‘निज स्वत्व’ बचा उसे गले से लगाइये ||

हिन्द देश के निवासी,हिन्दी अपनाइये ||२||



सभ्यता सभी की सीख पर-गुण मन धरें –

माना कि विकास करें,और ज्ञान-धन भरें ||

किन्तु निज संस्कृति, वाणी, जो विरासत में-

मिली इसे छोड़िये न ‘प्राण’ से बचाइये ||

हिन्द देश के निवासी,हिन्दी अपनाइये ||३||


‘एकता’,‘अनेकता’ में,माना मेरे देश में है |

कोई बात नहीं,माना भेद भूषा वेश में है ||

समझें जो बात लोग,‘गूँगे और बहरे’ न हों-

इस लिये हिन्दी भाषा सरल बनाइये ||

हिन्द देश के निवासी,हिन्दी अपनाइये ||४||



जैसे महासागर में सारी नदियाँ हों मिली |

भिन्न भिन्न फूलों से या सारी बगिया हो खिली ||

वैसे सारी भाषाओं के शब्द मेरी हिन्दी में हैं-

इस लिये हिन्दी निज ‘वाणी’ में बसाइये ||

हिन्द देश के निवासी,हिन्दी अपनाइये ||५||


 


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About This Blog

साहित्य समाज का दर्पण है |ईमानदारी से देखें तो पता चलेगा कि, सब कुछ मीठा ही तो नहीं , कडवी झाडियाँ उगती चली जा रही हैं,वह भी नीम सी लाभकारी नहीं , अपितु जहरीली | कुछ मीठे स्वाद की विषैली ओषधियाँ भी उग चली हैं | इन पर ईमानदारी से दृष्टि-पात करें |तुष्टीकरण के फेर में आलोचना को कहीं हम दफ़न तो नहीं कर दे रहे हैं !!

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