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गुरुवार, 12 जुलाई 2012

शंख-नाद(एक ओज गुणीय काव्य)-(स) प्रेरण -(१)- सुनो पथिक!


 

प्रीति-डगर के पथिक हो|

शूल पन्थ के पथिक हो||

सुनो तनिक तो तुम अहो!

सुनो तनिक तो तुम अहो!!

!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!



 यों तो दृढ़ता प्रेय है|

अडिग तुम्हारा ध्येय है||

माना चढ़ना श्रेय है||

आगे बढ़ना श्रेय है||

किन्तु नियति के ताप से-

दैव-जन्य संताप से-

यदि तुमको गलना पड़े|

उतर उतर चलना पड़े ||

जैसे गलता हिम, गलो|

उतर उतर कर तुम चलो||

बन कर निर्झर तुम ढलो||

पर हित अवनति में रहो|

बन कर गिरि, सरिता बहो||

सुनो तनिक तो तुम अहो!!१!!
   

सचमुच भला न दाह है|

दुःख-मय हृदय-प्रदाह है||

सुखद सुमन की राह है||

रस-मय प्रेम-प्रवाह है||

पर यदि जग के पाप से|

लड़ कर अपने आप से||

हो बेबस जलना पड़े-

संयम को छलना पड़े -

स्नेह-दीप से तुम जलो|

देकर अपना दम जलो||

हर कर सारा तम जलो||

त्याग दीप्ति में रत दहो|

प्रतिहिंसा में मत दहो||

सुनो तनिक तो तुम अहो!!२!!
  
||




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साहित्य समाज का दर्पण है |ईमानदारी से देखें तो पता चलेगा कि, सब कुछ मीठा ही तो नहीं , कडवी झाडियाँ उगती चली जा रही हैं,वह भी नीम सी लाभकारी नहीं , अपितु जहरीली | कुछ मीठे स्वाद की विषैली ओषधियाँ भी उग चली हैं | इन पर ईमानदारी से दृष्टि-पात करें |तुष्टीकरण के फेर में आलोचना को कहीं हम दफ़न तो नहीं कर दे रहे हैं !!

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