दर्दों में भी प्रसन्नता का ओज बिखेरो !
काँटों में भी हँसो, सु- मन बन जग महकाओ !!
तर्क-जाल में फांस 'ज्ञान' को हना जिन्होंने |
अपने चारों ओर अँधेरा बुना जिन्होंने ||
मायावी 'दुर्ज्ञान'किया है घना जिन्होंने |
ये जुगनूँ हैं, चमक बहुत क्षण भंगुर इनकी |
बन कर सूरज इनका हर अस्तित्व मिटाओ!!
काँटों में भी हँसो, सु-मन बन जग महकाओ !!१!!
इनकी उठती उँगली की तुम चिन्ता छोड़ो |
इनकी थोथी,झूँठी बातों का भ्रम तोड़ो ||
बिखरी अपनी शक्ति स्वयं की जुटा के जोड़ो|
हिंसा वाली इनकी मैली बाँह मरोड़ो ||
इनके मन में घृणा-बेलि पनपी फूली है ||
प्रेम-रसायन से तुम उसकी मूल मिटाओ ||
काँटों में भी हँसो,सु-मन बन जग महकाओ !!२!!
क्या कर सकते हैं इनके हाथों के पत्थर ?
चेतो और करारा इनको दे दो उत्तर ||
इनके आरोपों को कर दो और निरुत्तर |
त्यागो इनकी अन्यायी ताक़त का अब डर ||
साहस करो, शिवा,राणा, अक़बरके वंशज |
ओ दशगुरु के पूत , कमर कस इन्हें मिटाओ !!३!!
अपने 'क्रान्ति-गीत' के गूँजे स्वर मत रोको |
निज प्रयास में रोड़ा बने उसे तुम टोको ||
'पाप' हिला दे उस भीषण आँधी के झोंको !
आग बनो, अत्याचारों की करकट फूँको !!
'वित्त वाद' 'सुख वाद'विलासों के कूड़े को -
एक ढेर पर रख कर फिर होलियाँ जलाओ ||
काँटों में भी हँसो, सु-मन बन जग महकाओ !!४!!
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