चेतना में दीखता क्यों जोश नहीं है??
हौसला है, कछुए से हर जाए क्यों ?
आदमी है यह कोई खरगोश नहीं है||
नब्ज़ है बाकी अभी,इंसानियत जिन्दा-
धडकन भी इसकी हुयी खामोश नहीं है||
प्यासी हुई है देखिये,प्रीति की मैना-
मरुस्थल में पानी कई कोस नहीं है||-
नज़रों से उसे गिरा कर अच्छा नहीं किया-
कौन है जिसमें कोई भी दोष नहीं है??
खा लिया कितना है, इतना पेट बढ़ गया -
"प्रसून"तुम्हें अभी भी संतोष नहीं है|
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