मेरी साँस की डोर तुम्हारे हाथों में।
है दामन का छोर तुम्हारे हाथों में।।
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प्यासा जैसे रहा हो कोई सावन में।
खड़ा लिये उम्मीद हे जैसे आँगन में।।
तुम आये मन भीग उठा, आनंद मिला--
मैं हूँ हर्ष विभोर,प्रेम सौगातों में।
नाच उठें ज्यों मोर, सघन बरसातों में।।1।।
लम्बी विरह के बाद,तुम्हारी पहुनाई।
जैसे बादल हटे पूर्णिमा खिल आयी।।
बिखरा सुन्दर हास,धरा के आँचल में--
है प्रकाश पुरज़ोर ,मेरे जज़्वातों में।
ज्यों खुश हुए चकोर, चाँदनी रातों में।।2।।
मिलन की वीणा से पीडित मन बहलाओ।
तार प्यार के घीरे-घीरे सहलाओ ।।
अँगुली का वरदान,जगे मीठी सरगम-
छुपे हैं मीठे शोर,मधुर आघातों में।
डूबी हर टंकोर,मृदुल सुर सातों में।।3।।
मैंने मन की कह ली,तम भी बोलो तो।
मेरे कानों में भी मधुरस घोलो तो।।
है मिठास मिसरी सी कितनी स्वाद भरी--
हे प्रियतम चितचोर,तुम्हारी बातो में।
सुख मिल गया अथोर ,स्नेह सौगातों में।।4।।
"प्रसून" तेरी याद, इस तरह मन में है--
मीठी-मीठी गन्ध महकती सुमन में है।।
कोई सुन्दर मोती मानो सीपी में---
उतरे जैसे हंस बगुल की पाँतों में।
या शबनम की बूँद कमल के पातों में।।5।।
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