इस ग्रन्थ में ईश्वर और सरस्वती से उनके विभिन्न गुणों के आधार पर निवेदन की अलग अलग रचनायें हैं ! इसी क्रम में सरस्वती माँ से यह याचना की गयी है कि कौन से रस में क्या लक्षण हों जों शिवो मायता की और अग्रेसर हों सकें हम !
(सारे चित्र ''गूगल-खोज' से साभार)
जिस को पढ़ कर सभी में,
‘उत्तम’ जगें ‘विचार’ |
माता ! मेरे ‘काव्य’ में,
ऐसा करो ‘सुधार’ !!
‘कविता’ में ‘उत्साह’ की, भर दो ऐसी ‘शक्ति’ !
जिसको सुनकर हृदय में, जागे
‘राष्ट्र-भक्ति’ !!
‘दान-वीर’, ‘परमार्थी’,
‘धर्मवीर’-‘रण-धीर’ |
‘सत्साहस’, ‘संकल्प’ दृढ़,
लेकर लड़ें ‘सुवीर’ ||
‘दुस्साहस’ करके न कुछ, हों
‘सीमा’ से पार |
माता ! मेरे ‘काव्य’ में,
ऐसा करो ‘सुधार’ !!१!!
सुनें ‘वीर-रस-काव्य’ को,
उन का जागे ‘सत्त्व’ |
जन-हित अर्पित करें वे,
अपना हर ‘बल-स्वत्व’ ||
अब ‘कविता’ का ‘रौद्र-रस’,
‘शिव’ सा हो हे अम्ब !
‘मन’ का हरे ‘विकार’ बन,
‘मानवता-स्तम्भ’ !!
इसके ‘सफल प्रभाव’ से, रहे
न ‘विषम विकार’ !
माता ! मेरे ‘काव्य’ में,
ऐसा करो ‘सुधार’ !!२!!
और ‘भयानक-रस’ बने, ‘शोधक’
औ ‘सत्-रूप’ !
करे उजागर जो सदा,
‘कुवृत्तियों’ का रूप !!
‘पाप’ और ‘दुष्कर्म’ की,
‘रौद्र-भयानक-वृत्ति’ |
‘दुष्ट’ डरें, डर कर सदा,
‘स्वच्छ’ रखें ‘निज चित्त’ !!
‘द्वन्द-कलह-विद्रूप’ का,
अनुचित हो न ‘प्रसार’ !
माता ! मेरे ‘काव्य’ में,
ऐसा करो ‘सुधार’ !!३!!
बहुत खुबसूरत दोहा गीत !
जवाब देंहटाएंलेटेस्ट पोस्ट कुछ मुक्तक !
बहुत सुंदर रचना !
जवाब देंहटाएं