हे माँ वीणा-वादिनी
!, कर वीणा- झंकार !
‘वाणी’ को ‘ध्वनिमय’ करो,
हर कर सभी विकार !!
!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
‘व्यंजनाभिधा,लक्षणा’, तीन
शब्द की शक्ति |
मेरे काव्य में
भरें, ऐसी दो
अनुरक्ति !!
हँस बना लों तुम मुझे, मुझ
पर हो आरूढ़ |
‘चरण तुम्हारे’ सिर धरूँ,
यद्यपि हूँ मति मूढ़ ||
द्वन्द, ‘कलह की वृत्ति’ का माता
करो सुधार !!
‘वाणी’ को ‘ध्वनिमय’ करो, हर कर
सभी विकार !!१!!
वाणी अर्थ
से युक्त हो, ‘दोहा-गीत के छन्द |
ऐसे रस-मय
भाव हों, हारें ‘ह्रदय का द्वन्द’ ||
‘अलंकार’ से हों सजे, मेरे
‘दोहा-गीत’ |
‘सत्य-प्रेम-पीयूष’
से, सब के मन हूँ शीत ||
अम्ब, ’कृपाके अम्बु’ से, चित्त का
करो निखार !!
वाणी’ को ‘ध्वनिमय’ करो, हर कर सभी
विकार !!२!!
हे माँ ! मुझ पर कृपा कर, ‘वाणी’ ‘सत्य’ से सींच |
दे बल, जिससे कह सकूँ, ‘सत्य’
सभी के बीच ||
कड़वी ‘नीम की पत्तियाँ, हैं औषधि की भाँति |
इनको कर लें सहन सब. क्ल्रिपा करो यह मातु ||
ऋण समाज का है बहुत, उसको सकूँ
उतार ||
वाणी’ को ‘ध्वनिमय’ करो, हर कर सभी
विकार !!३!!
!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
अम्ब, ’कृपाके अम्बु’ से, चित्त का करो निखार !!
जवाब देंहटाएंवाणी’ को ‘ध्वनिमय’ करो, हर कर सभी विकार !!२!!
bahut sundar bhavabhivyakti .badhai .
सुन्दर प्रस्तुति-
जवाब देंहटाएंआभार-
सादर नमन-