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चलो चलें, दो पल हम हँस लें-
भरें ‘प्रीति’ से ‘प्रान’ रे !
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‘सच्चे प्रेम’ को
भूल, ‘काम’ से|
लिपटे ‘ऊँचे
धाम’-‘दाम’ से ||
‘आत्मा’ की
‘अनुभूति’ नहीं है-
‘लुब्ध’ हुये हैं
‘हाड़-चाम’ से ||
‘प्रेम की परिभाषा’ से ‘मानव’-
है कितना अनजान रे !!
चलो चलें, दो पल हम हँस लें-
भरें ‘प्रीति’ से ‘प्रान’ रे !!१!!
केवल ‘जीने की चाहत’
है |
मात्र ‘निज भरण’ में
ही रत हैं ||
‘जोंक’ और ‘खटमल’ की
नाईं-
‘पर चिन्ता’ से दूर,
‘विरत’ हैं ||
‘पशु-बल’ से हम आज चाहते-
हैं होना ‘धनवान’ रे !!
चलो चलें, दो पल हम हँस लें-
भरें ‘प्रीति’ से ‘प्रान’ रे !!२!!
‘थोथी’, दाबे ‘बगल’, ‘पोटली’ |
‘जीने की हर बात’ खोखली ||
‘पीत-हरे, अधमरे पर्ण’ हैं-
‘पल्लव-मूल’ हैं हुई ‘पोपली’ ||
‘चमक-दमक’ ही, ‘मानवता’ की-
बनी हुई ‘पहँचान’ रे !!
चलो चलें, दो पल हम हँस लें-
भरें ‘प्रीति’ से ‘प्रान’ रे !!३!!
‘लोहा,
ताँबा, मिट्टी, पत्थर’ |
‘काठ,
काँच, औ कठोर कंकर’ ||
‘मुख्य’
हुये हैं, ‘गौण’ हुआ है-
‘भाव-भरा
भावुकता-परिसर’ ||
‘जड़-निर्जीव यंत्र’ से भी-
तो सस्ता ‘इंसान’ रे ||
चलो चलें, दो पल हम हँस लें-
भरें ‘प्रीति’ से ‘प्रान’ रे !!४!!
राज़ी राज़ी या बरज़ोरी |
लूट लाट कर चोरी चोरी ||
जेब काट कर, मांग या ठग कर-
चाह रहे सब, ‘भरें तिजोरी’ ||
‘स्वर्ण-रजत’ से बिका हुआ है-
यह ‘लोभी इंसान’ रे !!
चलो चलें, दो पल हम हँस लें-
भरें ‘प्रीति’ से ‘प्रान’ रे !!५!!
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बेहतर लेखनी !!!
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