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व्यवहार सब का मन माना हुआ है |
हर कोई ‘धन’ पर दीवाना हुआ है ||
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‘मरु-भूमि’ जैसे लोग हुये ‘रूखे’ |
‘ग्रीष्म-सर’ जैसे ‘संयोग’ हुये रूखे ||
‘प्रेम के सारे प्रयोग हुये रूखे |
आज कल ‘मन’ से ‘मन’के ‘सम्बन्ध’ को | और ‘प्यार’ के ‘मधुर मधुर अनुबन्ध’ को ||
बहुत ही कठिन अब निभाना हुआ है |
‘अपना’ भी इतना ‘बेगाना’ हुआ है ||
‘अपना’ भी इतना ‘बेगाना’ हुआ है ||
व्यवहार सब का मन माना हुआ है |
हर कोई ‘धन’ पर दीवाना हुआ है ||१||
‘कलिकायें’ तोड़ने के आदी हुये |
‘बाग’ के लिये ये ‘अवसादी’ हुये ||
‘माली’ आज कितने विवादी हुये ||
बेच दिया ‘सुमनों’ के ‘मकरन्द’ को |
मोल लिया ‘काँटों’ के ‘दुःख-द्वन्द’ को ||
‘मलिन’ आज ‘मौसम’, ‘सुहाना’ हुआ है |
‘पतझर’ का, ‘मधुवन’, ‘निशाना’ हुआ है ||
व्यवहार सब का मन माना हुआ है |
हर कोई ‘धन’ पर दीवाना हुआ है ||२||
‘हीर’ और ‘राँझे’, ‘दिलदार’ नहीं हैं |
‘शीरी-फरहादों’ में, ‘प्यार’ नहीं है ||
किन ‘दिलों’ में ‘वासना-ज्वार’ नहीं है ||
‘तानों’ से भरे ‘मधुर आनन्द’ को |
‘प्रेम-गीतों’ वाले किसी ‘छन्द’ को ||
व्यर्थ आज कितना माना हुआ है |
‘अर्थ-हीन’ ‘मीठा तराना’ हुआ है ||
व्यवहार सब का मन माना हुआ है |
हर कोई ‘धन’ पर दीवाना हुआ है ||३||
‘कोकिल’ के ‘मीठे बोल’ हुये ‘फीके’ |
‘तितली’ के कितने ‘घिनौने सलीके’ ||
‘भ्रमर’ के ‘भाव’ आज नहीं ‘नीके’ ||
‘ज़िंदगी’ के चुभ रहे ‘हर द्वन्द’ को |
‘गले’ में ‘दुखड़ों’ के पड़े ‘फन्द’ को ||
मानों असम्भव कटाना हुआ है |
‘प्राणों’ को मुश्किल बचाना हुआ है ||
व्यवहार सब का मन माना हुआ है |
हर कोई ‘धन’ पर दीवाना हुआ है ||४||
इन की ‘व्यापार की नीति’ देखिये |
‘एश-भक्ति’ की इन की ‘रीति’ देखिये ||
इन की ‘समाज-सेवी प्रीति’ देखिये ||
‘प्रदूषित’ है कर दिया, ‘हर प्रबन्ध’ को |
तोड़ दिया ‘घावों’ के ‘हर बंध’ को ||
‘घाव’ बहुत ‘गहरा-पुराना’ हुआ है |
‘कहर’ सा इस को दुखाना हुआ है ||
व्यवहार सब का मन माना हुआ है |
हर कोई ‘धन’ पर दीवाना हुआ है ||५||
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