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सोमवार, 3 सितंबर 2012

ज्वालामुखी(एक गरम जोश काव्य)(क)(वन्दना)-- भगवान टेर सुन लो !!





 
(ज्वालामुखी)
    
 (एक गरम जोश काव्य)
   (क)
  (वन्दना)
     
              
        (१)
   ईश-वन्दना


भगवान टेर सुन लो !!

 

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भगवान टेर सुन लो,यह मनुज कितना है दुखी !
हृदय में फटने को है,'संयम'का प्रभुज्वालामुखी !!

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वदन में 'प्रहसन की आभा ',किन्तु अन्तर तप्त है |
'मौन स्पंदनलिए गतिएक 'हलचल सुप्त है ||
'तुष्टि का आवरण ओढ़ेकिन्तु भीतर भी भरा |
'असाहस का कफ़न ओढ़ेमृत्यु से पहले मरा ||

पी रहा 'विष ', 'सुधा 'कह कर,यों हुआ अनजान सा- 

पल रही 'पीड़ा है मन मेंकह रहा,"मैं हूँ सुखी ' ||
हृदय में फटने को है ,संयम का प्रभु ज्वाला मुखी !!१!! 



हर तरफ 'रौरव 'मचाती,एक धधकी 'आग है |
'हलाहल मुख में लिये,'तृष्णा 'के 'काले नाग हैं ||
'जठर की ज्वाला 'घिनौनी,'शान्ति 'को है लीलती |
क्या तुम्हीं ने दी है स्वामी,'प्रलय 'को कुछ ढील सी ??

चाहता हर कोई है,'केवल अकेले खाऊँ मैं '-

'काल बनकर मेटने जग,जगी 'ज्वाला चौमुखी ' | 
हृदय में फटने को है ,संयम का प्रभु ज्वाला मुखी !!२!! 


'लोभ ',दावानल बना है, 'बाग ,वन् 'को खा गया |
चुगे 'कलियाँ,लता,पादप ',हर 'सुमन 'को खा गया ||
मिट गये 'पीपल औ बरगद ','नीम-छाया लुप्त है |
'प्रगति घातक जो छबीली किन्तु 'माया '-लिप्त है ||

'मृत्यु 'का आव्हान,देखो,सभी मानव कर रहे -

 अल्प-आयु लोग मानों,'काल की है गति रुकी ||
हृदय में फटने को है ,संयम का प्रभु ज्वाला मुखी !!३!!


'विकासी कल-कारखाने ' 'कलुषता 'का वमन कर |
जलधि,सर,सरिता,सरोवर-'स्वच्छता 'का दमन कर ||
उगल कर 'बड़वाग्नि 'मानों 'नाश 'जल में बो रहा 
'रौद्र दानव 'कोई तन का घृणित 'कलि-मल 'धो रहा ||

या कि 'जीवन-रस 'मिटाना,चाहता हो कपट कर - 

हृदय में 'विष 'घोलने,आया हो 'युग का वासुकी ||
हृदय में फटने को है ,संयम का प्रभु ज्वाला मुखी !!४!!




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About This Blog

साहित्य समाज का दर्पण है |ईमानदारी से देखें तो पता चलेगा कि, सब कुछ मीठा ही तो नहीं , कडवी झाडियाँ उगती चली जा रही हैं,वह भी नीम सी लाभकारी नहीं , अपितु जहरीली | कुछ मीठे स्वाद की विषैली ओषधियाँ भी उग चली हैं | इन पर ईमानदारी से दृष्टि-पात करें |तुष्टीकरण के फेर में आलोचना को कहीं हम दफ़न तो नहीं कर दे रहे हैं !!

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