चल रे चल कांवरिया चल! ! (एक नयी सोच)
चल रे चल काँवरिया चल!
चल रे शम्भु-नगरिया चल!!
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घावों से घवराया क्यों?
व्रत के पथ पर आया क्यों??
दुःख पाकर सुख पायेगा-
काँटों भरी डगरिया चल!!
चल रे चल काँवरिया चल !!१!!
दुःख को गले लगाना सीख !
बात की आन निभाना सीख !!
एक तू ही तो दुखी नहीं-
सब की दुखी उँगरिया चल !!
चल रे चल काँवरिया चल !!२!!
अपनी आँखें पोंछ ले तू!
यह सच्चाई सोच ले तू !!
दर्दों के सैलावों में-
डूबी अखिल नगरिया चल !!
चल रे चल काँवरिया चल !!३!!
अन्धकार व्यवहारों में |
डूबे सभी विकारों में ||
आचरणों के चन्दा पर-
घिरी है मलिन बदरिया चल!
चल रे चल काँवरिया चल !!४!!
कर अपने मन को मजबूत!
अपनी छिपी शक्ति को कूत!!
नाच न् असत् की उँगली पर-
तू है नहीं पतुरिया चल !!
चल रे चल काँवरिया चल !!५!!
मौन निराशा का तू तोड़ !
मत अपनों से मुहँ को मोड़!!
नफ़रत के इस जंगल में -
बजा के प्रीति बंसुरिया चल !!
चल रे चल काँवरिया चल !!६!!
निज में अपना 'प्रियतम' खोज!
यह जीवन है 'उसका' ओज !!
रूह तेरी 'उस' की सजनी-
वह तेरा 'साँवरिया' चल!!
चल रे चल काँवरिया चल !!७!!
यों तो जग में मीत अनेक |
पर निज हित जीता हर एक ||
अपने 'प्रियतम' कान्हां की-
बन प्रियतमा 'गुजरिया' चल!!
चल रे चल काँवरिया चल !!८!!
समय के 'पंख' बहुत बलवान |
कभी न् रुकते हैं तू जान ||
"प्रसून" अब तू देर न् कर !
बीती जाये उमरिया चल !!
चल रे चल काँवरिया चल !!९!!
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