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बुधवार, 22 अगस्त 2012

शंख-नाद(एक ओज गुणीय काव्य)-(द) -जागरण गीत-(१) !! मेरे भैया !!




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     (१)

 !! मेरे भैया !!

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गली गली ‘अलख’जगाओ मेरे भैया !
दिलों में से‘अलस्’भगाओ मेरे भैया !!
‘प्रेरणा’ के गीत कुछ गाओ मेरेभैया !!!
!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
झूठे झूठे,मीठे मीठे सपनों में खोई हुई |
‘चेतनायें’चादरों को ताने हुये सोई हुई ||
‘नीलगायों’ ने खाईं जो’फ़सलें थीं बोई हुईं |||
टूटे नींद ‘भ्रमों’ की जो, ‘बोध’का,’प्रबोध’ का-
तुम कोंई ‘बिगुल’ बजाओ, मेरेभैया !
सुर ‘जागरण’के सजाओ,मेरे भैया !!
एक जुट हो के आ जाओ,मेरे भैया !!!
गली गली ‘अलख’जगाओ मेरे भैया !!१!!
 
‘भ्रष्टाचारों की भट्टी’में जली सारी दुनियाँ |
खाये,‘ज़हर,’जान ‘मिस्री-डली’सारी दुनियाँ ||
मैली मैली ‘पंक’ में है गली सारी दुनियाँ !!!
हो गया है कुण्ठित,’विवेक अच्छे बुरे’ का |
‘नीकी राह’ इसको सुझाओ,मेरेभैया !
इसे समझाओ औ बुझाओ,मेरे भैया !!
‘दीप’मत ‘ज्ञान’ का बुझाओ,मेरे भैया !!!
गली गली ‘अलख’जगाओ मेरे भैया !!२!!
  

‘दानवों’ने ओढ़े हैं ‘मुखौटे’ ’देवताओं’के |
‘झोंके’चले‘पापों’की विषैली सी‘हवाओं’के ||
हो गये,’सुगन्धहीन ‘बाग’’ भावनाओं’के |||
साहसी लोगों के हाथों के हाथों को दो मजबूतियाँ-
कोई अब हिम्मत जुटाओ,मेरे भैया !
पड़े हुये ‘पर्दे’उठाओ,मेरे भैया !!
शंकाओं की ‘धुन्ध’हटाओ,मेरे भैया !!!
गली गली ‘अलख’जगाओ मेरे भैया !!३!!

‘प्रतिभाओं’से न होना कभी अनजान से |
‘हीरे’ढूँढ कर लाओ,’कोयले की खान’से ||
उनको तराशो और,’दृढता’की‘सान’से !!!
‘प्यार के धागे’ में और एक एक करके-
उन्हें गूँथ‘मालाएँ’बनाओ, मेरे भैया !
भारतके गले में पहनाओ, मेरे भैया !!
रूठी हुई ‘मैया’,मनाओ, मेरे भैया !!!
गली गली ‘अलख’जगाओ मेरे भैया !!४!!

कदाचारियों में भे होंगे कई सदाचारी भी |
‘इन्हींआम लोगों’में ही होंगे ‘अवतारी’भी ||
होंगी इनमें कई खूबियाँ हमारी भी |||
नगर नगर गाँव गाँव जाओ, मेरे भैया !
डगर डगर जा कर मंझाओ, मेरे भैया !!
‘निराशा’में ‘आशा’उपजाओ, मेरे भैया !!!
गली गली ‘अलख’जगाओ मेरे भैया !!५!!
 
देखो,कठिन हुई‘रीति’,‘प्रीति’की निभानी है |
‘धूप’ जैसे ताप मिले,सूख गया ‘पानी’ है ||
 बड़ी पीड़ा भरी इन ‘नयनों’ की कहानी है |||
‘निष्ठा’ भरे ‘प्रेम’ के ‘नीर‘ की बहाओ धार !
मर रही नमी को जिलाओ, मेरे भैया !
‘पानी’ जी भर पिलाओ, मेरे भैया !!
‘रेत’ में “प्रसून” फिर खिलाओ, मेरे भैया !!!
गली गली ‘अलख’जगाओ मेरे भैया !!६!!
 

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साहित्य समाज का दर्पण है |ईमानदारी से देखें तो पता चलेगा कि, सब कुछ मीठा ही तो नहीं , कडवी झाडियाँ उगती चली जा रही हैं,वह भी नीम सी लाभकारी नहीं , अपितु जहरीली | कुछ मीठे स्वाद की विषैली ओषधियाँ भी उग चली हैं | इन पर ईमानदारी से दृष्टि-पात करें |तुष्टीकरण के फेर में आलोचना को कहीं हम दफ़न तो नहीं कर दे रहे हैं !!

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