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मंगलवार, 19 जून 2012

बंजर दिल की धरती। ( ह्कीक़त की एक गज़ल)



प्यार का फूटा नहीं है ,एक अंकुर देखिये।
दिल की धरती हो गयी है,कितनी बंजर देखिये।।
खाद,पानी 'प्रेरणा' के हो गये हैंसब विफल-
आचरण की स्थली अब बहुत ऊसर देखिये||
   
  
सबके जज्वातों की चोटों का असर मुझ पर हुआ-
दर्द का छलका है आँखों में समुन्दर देखिये ||
  
कल तलक थीं रोशनी की धुंधली उम्मीदें मगर-
आज फिर छाया हुआ कोहरे का मंज़र देखिये||
  
मैंने सोचा था कि उनको दोस्त का दूं मर्तबा-
पर उन्होंनेपीठ पर मारा है खंज़र देखिये||
  
'प्रसून'अंगों से लगेजो गगन बेली की तरह-
जोड़ कर सम्बन्ध पीते,लहू शातिर देखिये||




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About This Blog

साहित्य समाज का दर्पण है |ईमानदारी से देखें तो पता चलेगा कि, सब कुछ मीठा ही तो नहीं , कडवी झाडियाँ उगती चली जा रही हैं,वह भी नीम सी लाभकारी नहीं , अपितु जहरीली | कुछ मीठे स्वाद की विषैली ओषधियाँ भी उग चली हैं | इन पर ईमानदारी से दृष्टि-पात करें |तुष्टीकरण के फेर में आलोचना को कहीं हम दफ़न तो नहीं कर दे रहे हैं !!

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