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कितने ‘सुन्दर फूल’ हैं इसमें !
विष वाला रस भरा है जिस में ||
‘छल’ है इस के ‘मधुर स्वरस’ में |
‘कीट’ अगर फँस जाये इस में ||
‘मौत’ उतर जाये ‘नस-नस’ में |
बच जाये, है किस के बस में ||
बच न सकेगी उस की जान ||
इस ‘घटपर्णी’ को पहँचान !!१!!
कई लोग इस ‘घट पर्णी’ से |
दुःख देते अपनी ‘करनी’ से ||
ऊपर से लगते अति नीके |
किन्तु ‘भार’ हैं ‘इस अवनी’ के ||
मीत हैं ये बस ‘बनी-बनी’ के |
‘मीत’ नहीं होते ‘बिगड़ी’ के ||
‘सब के दर्दों’ से अनजान ||
इस ‘घटपर्णी’ को पहँचान !!१!!
‘पाण्डित्य’ का ‘ढोंग’ कर रहे |
‘षटरस व्यंजन’ भोग कर रहे ||
‘माया का उपभोग’ कर रहे |
किन्तु ‘प्रकट’ में ‘योग’ कर रहे ||
कहते, “हम ‘सहयोग’ कर रहे |
हम सब का ‘हर रोग’ हर रहे” ||
ये ‘कितने ढोंगी इंसान |
इस ‘घटपर्णी’ को पहँचान !!२!!
“महँगाई को दूर करेंगे” |
‘अब की बार’ ज़रूर करेंगे ||
भारत को ‘मशहूर’ करेंगे |
भैया, सब की पूर करेंगे ||
‘प्रगति-बजट’ मंजूर करेंगे |
‘अन्धेरे’ में ‘नूर’ भरेंगे” ||
‘जुगनू’ जैसी इन की ‘शान’ ||
इस ‘घटपर्णी’ को पहँचान !!३!!
हार गया ‘पाखण्ड’ है इन से |
कौन बड़ा ‘उद्दण्ड’ है इन से ||
कौन बड़ा ‘मुस्टंड’ है इन से |
पाया सब ने ‘दण्ड’ है इन से ||
‘संकट’ मिला ‘प्रचण्ड’ है इन से |
हारा ‘स्वयम् घमण्ड’ है इन से ||
साक्षात् हैं ये हैवान ||
इस ‘घटपर्णी’ को पहँचान !!४!!
जहाँ ‘कलह की आग’ लगाते |
वही ‘शान्ति की अलख’ जगाते ||
‘अड़ियल कुक्कुट’ पाल चुगाते |
उन को आपस में लड़वाते ||
फिर उन की ये ‘सुलह’ कराते |
‘दोनों के ‘दादा’ कहलाते ||
‘तोड़-फोड़ के ये शैतान’ ||
इस ‘घटपर्णी’ को पहँचान !!५!!
‘विष-पादप’ के सभी “प्रसून” |
इन में ‘खूनी’ भरा ‘जूनून’ ||
इन के मुहँ को लगा है ‘खून’ |
महज़ ‘नाश’ इन का ‘क़ानून’ ||
‘पर हिंसा’ में इन्हें सुकून |
इन से बगिया है आरून ||
ढूँढो इन का ‘कोई निदान’ ||
इस ‘घटपर्णी’ को पहँचान !!६!!
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