(सारे चित्र' 'गूगल-खोज' से साभार)
धन-बल, जन-बल, राज-बल, की हो गयी शिकार !
नारी पशुता से दबी, विवश अर्द्ध संसार !!
मुस्तण्डे-गुण्डे कई, कई कु–धर्म-महन्त !
पाखण्डों का है नहीं, जिनके कोई अन्त !!
निसन्तान कुछ नारियाँ, फँस कर इनके जाल !
सम्मोहित तन सौंपतीं होतीं पूत-निहाल !!
ढोंगों के ऐसे खुले, तन्त्र–मन्त्र-बाज़ार !
नारी पशुता से दबी, विवश अर्द्ध संसार !!1!!
झूठे वादों में फँसीं, कुछ धनिकों के जाल !
भोली कई किशोरियाँ, खोतीं लाज-प्रवाल !!
कहते बिना दहेज़ के, तुम से करूँ विवाह !
फिर धोखा दे छोडते, पूरी कर के चाह !!
बेटी निर्धन पिता की, सहतीं अत्याचार !
नारी पशुता से दबी, विवश अर्द्ध संसार’ !!2!!
कल अन्धेरे में लुटी, कुल-ललना की लाज !
जैसे किसी कबूतरी, के पर नोचे बाज !!
तितली को ज्यों छिपकली, निर्दय रखे दबोच !
या गुलाब की पंखुड़ी, निठुर पवन ले नोच !!
धूर्त दरिन्दे काम के, करते अत्याचार !
नारी पशुता से दबी, विवश अर्द्ध संसार !!3!!
paristhiyon kaa sundar chitran !
जवाब देंहटाएंप्रेम !
तुझे मना लूँ प्यार से !