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शनिवार, 22 दिसंबर 2012

मुकुर(यथार्थवादी त्रिगुणात्मक मुक्तक काव्य)(ठ) नारी(१)नारी की लाज तार तार !

एक ओर 'नारी उत्पीडन' का लंबा इतिहास दूसरी ओर, 'नारी सुधार का घृणित ढोंग | मैं यह भी मानता हूँ कि,कई 'नारी कल्याण' की संस्थाएं अच्छी सेवा कर रही हैं किन्तु इन में कुछ संस्थाओं द्वारा निष्ठा -विशवास  में  सेंध मारने की घटनाओं का उल्लेख,समाचारों किम्वादंतियों,सिने-कथाओं ,उपन्यासों,और कुछ महानगरों  में यात्रा के दौरान लोगों द्वारा बताए जाने  पर सुनने पढाने में आया |कुछ मेरी कल्पना के मिलाजुला रूप इस रचना में है | नारी को भटका कर या अपहरण करके  बेचने की घटनाएँ आम हैं | 
(सारे चित्र 'गूगल-खोज'से साभार)     


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‘नारी की लाज’ हुई ‘तार तार’ देखिये !

लुट रही है, वह ‘सरे बाज़ार’ देखिये !!

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बहला के, फुसला के, उसे किसी हाल में |

फांसते हैं, कई उसे अपने ‘जाल’ में ||

‘जादू’ जैसे ‘रस भरे’ अपने ‘कमाल’ में |

हैं ‘कोकिलों’ को फंसाते ‘करील-डाल’में ||

या कोई उसके ‘पेट की आग’ बुझाने |

अपनी ‘हविश’ की ‘घिनौनी प्यास’ मिटाने ||  

हर तरह करता उसे ‘लाचार’ देखिये !

‘इंसान’ हुआ किस तरह ‘मक्कार’ देखिये !!

‘नारी की लाज’ हुई ‘तार तार’ देखिये !

लुट रही है, वह ‘सरे बाज़ार’ देखिये !!१!!



यह बात कितनी है अरे अजीब आजकल !

‘जिन्दा’ जलायी जा रही ‘तहजीब’ आजकल ||

कितना हुआ है देश ‘बदनसीब’ आजकल |

‘इंसानियत’ के गिर गये ‘नसीब’ आजकल ||

फिर भी लगे हैं ‘तरक्की’ के ‘शोर’ मचाने |

‘नारी-प्रगति’ के लगे हैं ‘स्वाँग’ रचाने ||

करते हैं ‘राजनीति’ के व्यवहार देखिये !

बनते ‘सुधारक’, कई तो ‘अवतार’ देखिये !!

‘नारी की लाज’ हुई ‘तार तार’ देखिये !

लुट रही है, वह ‘सरे बाज़ार’ देखिये !!२!!


‘नारी-सुधार-केन्द्र’ हैं कितने खुल रहे ?

‘आश्रम अनाथों के’ यहाँ, कितने चल रहे ??

इनको चलाने हेतु, कितने ‘नोट’ मिल रहे ?

‘तन’, ‘नारियों-कुमारियों’ के कितने पल रहे ??

‘अपनी कामना की गलित फसल’ उगाने |

तो कई लोग, इनसे बड़ी ‘रकम’ कमाने ||

कर इन के तन का ये रहे ‘व्यापार’ देखिये !

‘निष्ठुर’, जवानी’ पर हुये ‘प्रहार’ देखिये !!

‘नारी की लाज’ हुई ‘तार तार’ देखिये !


लुट रही है, वह ‘सरे बाज़ार’ देखिये !!३!!

‘भाषण’ की खोली है ‘बड़ी भारी ’ पोटली |

‘बातें’ हैं इनकी ‘ठोस’, किन्तु ‘नीति, ’खोखली’ ||

चलते हैं ‘चाल’, ‘घृणित’ और ‘बहुत दोगली’ |

‘हर बात’ इनकी, ‘झूठ और उलटी’ हो चली ||

‘शोहरत का महल’, ‘नील गगन’ तलक उठाने |

‘ऐयाशियों’ से अपनी ‘रँगी रात’ सजाने ||

करते हैं ‘अस्मिता’ का ये ‘शिकार’ देखिये !

हैं कितने ‘वासना’ के ये ‘बीमार’ देखिये !!

‘नारी की लाज’ हुई ‘तार तार’ देखिये !

लुट रही है, वह ‘सरे बाज़ार’ देखिये !!४!!



पाला था जिन्हें, बड़े ‘लाड़ और प्यार’ से |

‘अपनी सुता’ की तरह रखा था ‘दुलार’ से ||

सींचा ‘ममत्व’ की ‘सुहानी स्नेह-धार’ से |

वे भी न बचीं इनके ‘घिनौने प्रहार’ से ||

ढाया है ‘ज़ुल्म’ इनकी ‘क्रूर मनोदशा’ ने |

‘बेदर्द’ हैं, ‘निर्लज्ज’, इनके सभी फ़साने ||

खुद पाली ‘तितलियों’ को रहे मार देखिये !

‘रंगीन मछलियों’ को रहे मार देखिये !!

‘नारी की लाज’ हुई ‘तार तार’ देखिये !

लुट रही है, वह ‘सरे बाज़ार’ देखिये !!५!!



‘लोगों का लोभ’ बन गया, ‘दहेज’ देखिये !

‘शोषण’ से रहे ‘धन’ को ये सहेज देखिये !!

हैं ‘चाहतें इनकी’ बड़ी ‘खूंरेज़’ देखिये !

नारी को रहे ‘मौत के मुहँ’ भेज देखिये !!

करते होड़ ‘जिस्म’ को ‘जिन्दा’ ही जलाने |


ये तुल गये ‘नारीत्व का स्वत्व’ मिटाने ||

ये ‘रूप’ रहे ‘सृष्टि’ का पजार  देखिये !

ये ‘अपनी सभ्यता’ रहे विसार देखिये !!

‘नारी की लाज’ हुई ‘तार तार’ देखिये !

लुट रही है, वह ‘सरे बाज़ार’ देखिये !!६!!

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साहित्य समाज का दर्पण है |ईमानदारी से देखें तो पता चलेगा कि, सब कुछ मीठा ही तो नहीं , कडवी झाडियाँ उगती चली जा रही हैं,वह भी नीम सी लाभकारी नहीं , अपितु जहरीली | कुछ मीठे स्वाद की विषैली ओषधियाँ भी उग चली हैं | इन पर ईमानदारी से दृष्टि-पात करें |तुष्टीकरण के फेर में आलोचना को कहीं हम दफ़न तो नहीं कर दे रहे हैं !!

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