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शनिवार, 23 जून 2012

शंख-नाद (एक ओज गुणीय काव्य) -(अ)वन्दना -(२) सरस्वती वन्दना(तज कर वीणा आज जागरण-शंख बजाओ )

   

तज कर वीणाअरे जागरण शंख बजाओ !

!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
         
माता सोई 'मानवता' है इसे  जगाओ |

कुम्भकर्ण सी इसकी निद्रा इसे भगाओ ||  

नये चेतना के स्वर नभ में आज सजाओ |

तज कर वीणा अरे जागरण -शंख बजाओ !! 

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अन्धकार का जाल अकट है |

इस तम में 'अघ' बड़ा विकट है||

विवेक मानो हुआ बधिर है -

विचित्र सा छाया संकट है ||

छोड़ के लोरी मेरी माता -

इनको दीपक राग सुनाओ||

और अँधेरे दूर भगाओ ||

तेज से तुम दस दिशा सजाओ ||

तज कर वीणा अरे जागरण -शंख बजाओ !!१!!
  
स्वार्थ  भरी हर ओर कलह है |

नाश-राग में हिंसा-लय है ||

देखो तो माँ समय से पहले -

आने वाली यहाँ प्रलय है ||

इस जलती ज्वाला में हे माँ !

रस मय 'मेघ-राग' बरसाओ ||

गीत संधि के कोंई गाओ |

विनाश  की यह आग बुझाओ ||

तज कर वीणा अरे जागरण -शंख बजाओ !!२!! 
    

मैली सोच कर्म हैं मैले |

कुछ मानव- पशु बने बनैले ||

जल, थल, गगन, वायु को दूषित -

करते, खेल घिनौने खेले ||

"प्रसून"इन भटके लोगों को -

हे मैया आ कर चेताओ ||

सत्कर्मों में इन्हें लगाओ |

इनको इनका पंथ सुझाओ ||

तज कर वीणा आज जागरण-शंख बजाओ !!३!! 
      
     

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साहित्य समाज का दर्पण है |ईमानदारी से देखें तो पता चलेगा कि, सब कुछ मीठा ही तो नहीं , कडवी झाडियाँ उगती चली जा रही हैं,वह भी नीम सी लाभकारी नहीं , अपितु जहरीली | कुछ मीठे स्वाद की विषैली ओषधियाँ भी उग चली हैं | इन पर ईमानदारी से दृष्टि-पात करें |तुष्टीकरण के फेर में आलोचना को कहीं हम दफ़न तो नहीं कर दे रहे हैं !!

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