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शुक्रवार, 14 नवंबर 2014

झरीं नीम की पत्तियाँ (दोहा-गीतों पर एक काव्य) (14) आधा संसार (नारी उत्पीडन के कारण) (क) वासाना-कारा (vi) कुबेर-सुत |

  (सारे चित्र' 'गूगल-खोज' से साभार)
 दरिद्रता-दुःख-दीनता, निर्धनता की मार !
कितना पीड़ित विश्व में, है आधा संसार !!
पुत्र कुबेरों के कई, कारूँ के कुछ लाल !
जिनकी जेबों में भरा, बहुत मुफ़्त का माल !!
उल्टे-सीधे मद्य-मद, मदिराचरसअफ़ीम !
पीते खाते डोलते, कुछ मरियल कुछ भीम !!
कपट-जाल ले ढूँढते, फिरते नित्य शिकार !
कितना पीड़ित विश्व में, है आधा संसार !!1!!
बड़े मनचले, चुलबुले, और बड़े  उद्दण्ड !
जो भी चाहें ये करें, इन्हें न गर्मी-ठण्ड !!
पैसे के बल कुछ करें, ऐसे शोहदे लोग !
केवल इनको चाहिये, तरह तरह के भोग !!
कामोत्तेजक पेट भर, खाते नित्य अहार !
कितना पीड़ित विश्व में, है आधा संसार !!2!!
ये सब निर्धन-बस्तियों, में जाते हर रात !
रोज़ सजाते सेज निज, कामी बिना बरात !!
दाम लुटा कर, रूप-रंग, का करते रस पान !
ये भोगीतन रौंदते, रचते भोग-विधान !!
जीवन करते नष्ट नित, अनब्याहे सुकुमार !
कितना पीड़ित विश्व में, है आधा संसार !!3!!



बुधवार, 12 नवंबर 2014

झरीं नीम की पत्तियाँ (दोहा-गीतों पर एक काव्य) (14) आधा संसार (नारी उत्पीडन के कारण) (क) वासाना-कारा (v) पर नुची कपोती |

(सारे चित्र' 'गूगल-खोज' से साभार)

धन-बल, जन-बलराज-बल, की हो गयी शिकार !
नारी पशुता से दबी, विवश अर्द्ध संसार !!
मुस्तण्डे-गुण्डे कई, कई कुधर्म-महन्त !
पाखण्डों का है नहीं, जिनके कोई अन्त !!
निसन्तान कुछ नारियाँ, फँस कर इनके जाल !
सम्मोहित तन सौंपतीं होतीं पूत-निहाल !!
ढोंगों के ऐसे खुले, तन्त्रमन्त्र-बाज़ार !
नारी पशुता से दबी, विवश अर्द्ध संसार !!1!!


झूठे वादों में फँसीं, कुछ धनिकों के जाल !
भोली कई किशोरियाँ, खोतीं लाज-प्रवाल !!
कहते बिना दहेज़ के, तुम से करूँ विवाह !
फिर धोखा दे छोडते, पूरी कर के चाह !!
बेटी निर्धन पिता की, सहतीं अत्याचार !
नारी पशुता से दबी, विवश अर्द्ध संसार!!2!!

कल अन्धेरे में लुटी, कुल-ललना की लाज !
जैसे किसी कबूतरी, के पर नोचे बाज !!
तितली को ज्यों छिपकली, निर्दय रखे दबोच !
या गुलाब की पंखुड़ी, निठुर पवन ले नोच !!
धूर्त दरिन्दे काम के, करते अत्याचार !
नारी पशुता से दबीविवश अर्द्ध संसार !!3!!

शनिवार, 8 नवंबर 2014

झरीं नीम की पत्तियाँ (दोहा-गीतों पर एक काव्य) (14) आधा संसार (नारी उत्पीडन के कारण) (क) वासाना-कारा (iv) यौवन-विक्रय |

     (सारे चित्र' 'गूगल-खोज' से साभार)
अति आधुनिक समाज है, इतना हुआ सुधार !
देखो  यौवन बेचता, है आधा संसार !!
शराब-खाने, जुवा-घर, में मर्यादा नग्न !
सुरा पिलाती, रूप-रस, से कर सब को मग्न !!
काल-गर्ल का नाम धर, होती वेश्या-वृत्ति !
धन की भूखी  सुन्दरी, जहाँ कमाती वित्त !!
और इस तरह हो रहा, है तन का व्यापार !
देखो  यौवन बेचता, है आधा संसार !!1!!
अड्डे दादा-भाइयों, के हैं कई बहाल !
जहाँ रूप-बाज़ार के, होते कई दलाल !!
लाते कई किशोरियाँ, को भटका कर नीच !
करते कलुषित लाज को, पाप-नीर से सींच !!
बना वेश्या सबल पशु, करके बलात्कार !
देखो  यौवन बेचता, है आधा संसार !!2!!
बेबस कई किशोरियाँ, पाने को व्यवसाय !
फँसतीं इन के जाल में, हो जाये कुछ आय ||
बना इन्हें  स्मैकिया, हैरोइन का दास !
पापी इन को फाँस कर, रखते अपने पास !!
दिखा-दिखा भय मृत्यु का, करते अत्याचार !!
देखो यौवन बेचता, है आधा संसार !!3!!


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साहित्य समाज का दर्पण है |ईमानदारी से देखें तो पता चलेगा कि, सब कुछ मीठा ही तो नहीं , कडवी झाडियाँ उगती चली जा रही हैं,वह भी नीम सी लाभकारी नहीं , अपितु जहरीली | कुछ मीठे स्वाद की विषैली ओषधियाँ भी उग चली हैं | इन पर ईमानदारी से दृष्टि-पात करें |तुष्टीकरण के फेर में आलोचना को कहीं हम दफ़न तो नहीं कर दे रहे हैं !!

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