(सारे चित्र' 'गूगल-खोज' से साभार)
दरिद्रता-दुःख-दीनता, निर्धनता की मार !
कितना पीड़ित विश्व में, है आधा संसार !!
पुत्र कुबेरों के कई, कारूँ के कुछ लाल !
जिनकी जेबों में भरा, बहुत मुफ़्त का माल !!
उल्टे-सीधे मद्य-मद, मदिरा–चरस–अफ़ीम !
पीते खाते डोलते, कुछ मरियल कुछ भीम !!
कपट-जाल ले ढूँढते, फिरते नित्य शिकार !
कितना पीड़ित विश्व में, है आधा संसार !!1!!
बड़े मनचले, चुलबुले, और बड़े
उद्दण्ड !
जो भी चाहें ये करें, इन्हें न गर्मी-ठण्ड !!
पैसे के बल कुछ करें, ऐसे शोहदे लोग !
केवल इनको चाहिये, तरह तरह के भोग !!
कामोत्तेजक पेट भर, खाते नित्य अहार !
कितना पीड़ित विश्व में, है आधा संसार !!2!!
ये सब निर्धन-बस्तियों, में जाते हर रात !
रोज़ सजाते सेज निज, कामी बिना बरात !!
दाम लुटा कर, रूप-रंग, का करते रस पान !
ये भोगी’ तन रौंदते, रचते भोग-विधान !!
जीवन करते नष्ट नित, अनब्याहे सुकुमार !
कितना पीड़ित विश्व में, है आधा संसार !!3!!