tag:blogger.com,1999:blog-2801149061971904074.post5518816683628107607..comments2023-12-23T02:06:46.562-08:00Comments on साहित्य प्रसून: झरीं नीम की पत्तियाँ (दोहा-गीतों पर एक काव्य) (3)गुरु-वन्दना(ख) गुरु-गुण-गान (iv)बहुत किये ‘उपकार’ ! देवदत्त प्रसूनhttp://www.blogger.com/profile/06275143755319297820noreply@blogger.comBlogger2125tag:blogger.com,1999:blog-2801149061971904074.post-23510841999118187622014-07-11T09:02:41.984-07:002014-07-11T09:02:41.984-07:00बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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आपकी इस प्रविष्टि् की च...बहुत सुन्दर प्रस्तुति।<br />--<br /> आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (12-07-2014) को <a href="http://charchamanch.blogspot.in/" rel="nofollow"> "चल सन्यासी....संसद में" (चर्चा मंच-1672) </a> पर भी होगी।<br />--<br />हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।<br />सादर...!<br />डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'https://www.blogger.com/profile/09313147050002054907noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2801149061971904074.post-66893959604693188332014-07-11T06:31:16.598-07:002014-07-11T06:31:16.598-07:00सशक्त गुरूवन्दना -दोहावली, इतिहास के झरोखे से शब्द...सशक्त गुरूवन्दना -दोहावली, इतिहास के झरोखे से शब्द चयन उठाकर बहुत कुछ से वाकिफ कराती समझाती गुरु एक सार्वकालिक सार्वत्रिक जरूरियात है। साफ़ सन्देश देती है यह साहित्यिक धरोहर। आप भी पढ़ें :<br /><br /><br />झरीं नीम की पत्तियाँ (दोहा-गीतों पर एक काव्य) (3)गुरु-वन्दना(ख) गुरु-गुण-गान (iv)बहुत किये ‘उपकार’ !<br />( कुछ चित्र 'गूगल-खोज'से साभार) <br /><br /><br /><br />सदा ‘ज्ञानकी बीन’ के, जोड़े टूटे ‘तार’ |<br /><br />इस ‘समाज’ पर ‘गुरु’ ने, बहुत किये ‘उपकार’ ||<br /><br /><br /><br />जब ‘हद’ से ‘बेहद’ हुये, घनानन्द के ‘पाप’ |<br /><br />तब चाणक्य बने ‘गुरु’, हरने सबके ‘ताप’ ||<br /><br />जब ‘सिद्धार्थ’ बन गये, ज्ञानी ‘गौतम बुद्ध’ |<br /><br />क्रूर ‘अंगुलीमाल’ भी, हुआ ‘प्रबुद्ध’ व ‘शुद्ध’ ||<br /><br />सुलझा दी ‘उलझन’ सभी, ‘गुरु’ ने सुनी ‘पुकार’ |<br /><br />इस ‘समाज’ पर ‘गुरु’ ने, बहुत किये ‘उपकार’ ||१||<br /><br /><br /><br />‘धूल’ में ‘हीरा’ मलिन था, ग्वाला बालक ‘तुच्छ’ |<br /><br />उस ‘हीरे’ को ‘प्रेम’ से, पोंछ किया था ‘स्वच्छ’ ||<br /><br />‘बीज’-बीच ज्यों ‘वृक्ष’ है, होता लेकिन ‘सुप्त’ |<br /><br />वैसे विकसित ‘गुण’ हुये, बन गया ‘चन्द्रगुप्त’ ||<br /><br />‘समाज’ का ‘गुरु’ प्रबल हो, हो न कभी ‘लाचार’ !<br /><br />इस ‘समाज’ पर ‘गुरु’ ने, बहुत किये ‘उपकार’ ||२||<br /><br /><br /><br />‘गुरुवर’ गोरखनाथ ने, बन कर ‘कृपानिधान’ |<br /><br />भटके जो ‘पथ’ से उन्हें, दिया ‘ज्ञान का दान’ ||<br /><br />भर्तृहरि, राँझा तथा, ‘ज्ञानी’ गोपीचन्द |<br /><br />‘गुरु’ ने नरसी आदि के, काटे ‘भव के फन्द’ ||<br /><br />‘ऊसर’ ‘उपजाऊ’ किये, बरसा ‘अमृतधार’ |<br /><br />इस ‘समाज’ पर ‘गुरु’ ने, बहुत किये ‘उपकार’ ||३||virendra sharmahttps://www.blogger.com/profile/02192395730821008281noreply@blogger.com