tag:blogger.com,1999:blog-2801149061971904074.post3214648974433473476..comments2023-12-23T02:06:46.562-08:00Comments on साहित्य प्रसून: झरीं नीम की पत्तियाँ (दोहा-गीतों पर एक काव्य) (ट) ‘मानवीय पशुता’ | (६)काम नाट्य |देवदत्त प्रसूनhttp://www.blogger.com/profile/06275143755319297820noreply@blogger.comBlogger1125tag:blogger.com,1999:blog-2801149061971904074.post-37384694461312099162013-05-02T03:54:15.575-07:002013-05-02T03:54:15.575-07:00बहुत सुन्दर व सटीक ,,यथार्थ
’पशु-संस्कृति’ का ह...बहुत सुन्दर व सटीक ,,यथार्थ <br /><br /><br />’पशु-संस्कृति’ का हो रहा, बिलकुल ‘खुला’ प्रचार ||<br />---- वे इसलिए नंगे थे कि सिर्फ लंगोटी उपलब्ध थी, ये इसलिए नंगीं हैं कि हीरे लगी लंगोटियां खरीद अकें .. shyam guptahttps://www.blogger.com/profile/11911265893162938566noreply@blogger.com