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मंगलवार, 3 सितंबर 2013

पौण्ड्रक(१)कपट-तापस

वर्तमान काल में अध्यात्न का जो कृत्रिम स्वरूप सामने प्रकट हो रहा है वह अपने को 'भगवानकृष्ण' घोषित करने वाले पौण्ड्रक की याद दिलाता है | उस समय के एक पौण्ड्रक के आत्याचार से वासुदेव ने धरती को सुरक्षित किया | आज तो आध्यात्मिक सिद्धि के कारण जहाँ तहाँ अपने को भगवान घोशोत करने वाले धूर्त अनगिनत हैं | उस पर भी लोगों के अंधविश्वास की खुराक इन्हें 
भरपूर मिल रही है | कृष्ण के ज़माने में तो प्रजा ने स्वयं को भय से उसे समर्पित किया होगा 
किन्तु आज लोग स्वयम को स्वेच्छा से सौंप देते हैं | इन पापाचारी पौण्ड्रकों के उन्मूलन हेतु सभी प्रयास करें , सुझाव दें, इस आशय से कुछ एक दोहागीत प्रस्तुत हैं | 
९सारे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार)



 
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जैसे ‘पटरी’ से उतर, गयी हो कोई ‘रेल’ |
‘हविश’ की ‘घोड़ा-दौड़’ में, ’धर्म’ हुआ बिगड़ैल ||
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बना ‘कन्हैया’ फिर रहा, इक ‘दानव’ पुरज़ोर |
कहता, ’माखन-चोर हूँ’, है ‘अस्मत का चोर’ ||
निर्भय होकर कर चुका, ‘बड़े घिनौने काम’ |
‘बापू’ का यह नाम क्यों, करता बदनाम ||
‘ऊँट’ घूमता फिर रहा, अब पड़ गयी ‘नकेल’ |
‘हविश’ की ‘घोड़ा-दौड़’ में, ’धर्म’ हुआ ‘बिगड़ैल’ ||१||

 
सब को निराश कर रहा, धर ‘आशा’ उपनाम |
‘झूठी आशा’ बाँटता, बन कर ‘नकली राम’ ||
सब से कहता, ‘मैं बड़ा, छोटा है भगवान’ |
‘रावण’, ‘हिरणाकाशिपु’ सा, है इस में अभिमान ||
 ‘धर्म की छतरी’ बन गया, है ‘टूटा खपरैल’ |
‘हविश’ की ‘घोड़ा-दौड़’ में, ’धर्म’ हुआ ‘बिगड़ैल’ ||२||


कई ‘तमाशे’ कर चुका, यह ‘नौटंकीबाज़’ |
“प्रसून” इस के ‘ढोल’ की, पोल’ खुल गयी आज ||
इस की ‘परिसम्पत्तियों’ का है क्या अनुमान |
‘दौलत’ बहुत बटोर ली, ले चेलों से ‘दान’ ||
चुका ‘पौत्री’ से नहीं, खेल ‘घिनौना खेल’ |
‘हविश’ की ‘घोड़ा-दौड़’ में,’धर्म’ हुआ ‘बिगड़ैल’ ||३||
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4 टिप्‍पणियां:

  1. बढ़िया प्रस्तुति-
    आभार आदरणीया-

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. लाई कन्या साथ में, पुत्र कहाँ दी छोड़ |
      कन्या को भी छोडती, पकडे गुरु के गोड़ |
      पकडे गुरु के गोड़, गुरू घंटाल हो गया |
      रखा कमाय करोड़, अनैतिक बीज बो गया-
      हल्ला गुल्ला व्यर्थ, व्यर्थ करती उबकाई |
      मातु पिता निश्चिन्त, गुरू कर गया खलाई ||

      हटाएं
  2. वाह . बहुत उम्दा,सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति.शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामना
    कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |

    http://madan-saxena.blogspot.in/
    http://mmsaxena.blogspot.in/
    http://madanmohansaxena.blogspot.in/
    http://mmsaxena69.blogspot.in/

    जवाब देंहटाएं
  3. badhiya kataksh ... uttam rachna ... dharm ke naam par babayo ne jo dukane khol rakhi hai .. logo ko lutna or ab in jansha ram ne to had hi kar di us par bhi turra ye ki logo visheh kar striyo ki ankho par ab bhi patta pada hai .. wo hi unke girftari ke virodh kar rahin hai .. jane kya kya or hona baki hai is desh me abhi
    आंख का अँधा
    नाम नयनसुख
    काली का धन्धा

    muh me raam
    najro me hai gori
    wah re jogi
    badhyi evem shubhkamnaye :)

    जवाब देंहटाएं

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साहित्य समाज का दर्पण है |ईमानदारी से देखें तो पता चलेगा कि, सब कुछ मीठा ही तो नहीं , कडवी झाडियाँ उगती चली जा रही हैं,वह भी नीम सी लाभकारी नहीं , अपितु जहरीली | कुछ मीठे स्वाद की विषैली ओषधियाँ भी उग चली हैं | इन पर ईमानदारी से दृष्टि-पात करें |तुष्टीकरण के फेर में आलोचना को कहीं हम दफ़न तो नहीं कर दे रहे हैं !!

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