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बुधवार, 14 नवंबर 2012

दीपावली की रचनायें(६)गोवर्धन'-पूजा

अभिधा 'शब्द-शक्ति' का सरल सुबोधगम्य एक गीत |

(सारे चित्र 'गूगल-खोज से साभार) 



'दीपावाली  की पीठ' पे आया, 'पर्व' है 'गोवर्धन' |
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जली रोशनी जगमग, 'तारे गगन के' शर्माये' |

मिलें 'दिलों' से 'दिल' हम सब के, 'प्यार' से गरमाये || 

बच्चे, बूढ़े, जवान खुश थे  झूमे  नर नारी-

खुशियों से भर उठे थे सब के सजते  'घर आँगन' ||

'दीपावाली  की पीठ' पे आया, 'पर्व' है 'गोवर्धन' ||१||


थाल सजा कर,चलो,आरती गायों की कर लें |

उन्हें खिला कर भोजन, 'बर्तन' दूध से हम भर लें ||

पशु-धन पालें और करें हम, उन की हर सेवा-

करें दुधारू पशुओं का हम, ऐसे 'सम्वर्धन' ||

'दीपावाली  की पीठ' पे आया, 'पर्व' है 'गोवर्धन' ||२||


वन-बागों की रक्षा कर के, 'पर्यावरण' बचायें |

'चारागाह' बना कर अच्छे, गायें वहाँ चरायें ||

उन की प्यास बुझाने,उन को प्यार से नहलाने-

'सुन्दर सरस पोखरों का हम करेंगे संरक्षण ||

'दीपावाली  की पीठ' पे आया, 'पर्व' है 'गोवर्धन' ||३||


"प्रसून", 'कान्हां' जैसे 'गायों के चरवाहे' हों |

स्वस्थ नागरिक, 'भारत माता' के मन चाहे हों ||

दूध और घी, माखन खा कर, हृष्ट, पुष्ट सब हों- 

पूरे जग में हो 'भारत के गौरव' का गुन्जन ||४||

   

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2 टिप्‍पणियां:

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साहित्य समाज का दर्पण है |ईमानदारी से देखें तो पता चलेगा कि, सब कुछ मीठा ही तो नहीं , कडवी झाडियाँ उगती चली जा रही हैं,वह भी नीम सी लाभकारी नहीं , अपितु जहरीली | कुछ मीठे स्वाद की विषैली ओषधियाँ भी उग चली हैं | इन पर ईमानदारी से दृष्टि-पात करें |तुष्टीकरण के फेर में आलोचना को कहीं हम दफ़न तो नहीं कर दे रहे हैं !!

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